सुप्रीम कोर्ट का केंद्र व चुनाव आयोग को नोटिस ‘मुफ्त’ के चुनावी वादे गंभीर मुद्दा

    Loading

    Supreme Court’s notice to the Center and the Election Commission, the election promises of ‘free’ are a serious issueचुनाव में मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दल मुफ्त के तोहफे और आर्थिक मदद देने का वादा करते हैं. तमिलनाडु के डीएमके और एआईएडीएमके जैसी पार्टियां दशकों से ऐसा करती आ रही हैं. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में ऐसी मुफ्तखोरी वाले वादे बहुत बड़ी बाधा हैं. साधनसंपन्न पार्टियां इस तरह के प्रलोभन दे सकती हैं जबकि सामान्य उम्मीदवार ऐसा कुछ भी करने की हैसियत नहीं रखता, इसलिए उसकी चुनावी संभावनाएं बुरी तरह प्रभावित होती हैं.

    सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया जिसमें पूछा गया है कि फ्री तोहफे देने का वादा कर मतदाताओं को लुभाना कितना सही है? सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि इस याचिका के जरिए गंभीर मुद्दा सामने आया है. राजनीतिक पार्टियों का यह ‘मुफ्त बजट’ देश के नियमित बजट से भी बड़ा होता है तथा पार्टियों व उम्मीदवारों के बीच असमानता की स्थिति उत्पन्न करता है.

    कुछ ताजा उदाहरण

    अपनी याचिका में अश्विनी कुमार ने आम आदमी पार्टी के उस वादे का जिक्र किया जिसमें 18 वर्ष व ज्यादा की महिला को प्रतिमाह 1,000 रुपए देने का वादा किया है. कांग्रेस ने हर गृहिणी को हर माह 2,000 रुपए और 8 गैस सिलेंडर मुफ्त देने का चुनावी वादा किया. कालेज जाने वाली हर लड़की को स्कूटी, 12वीं पास करने पर 20,000 रुपए, 10वीं पास करने पर 15,000 रुपए का वादा किया गया. शिरोमणि अकाली दल ने भी महिला मतदाताओं को 2000 रुपए देने का वादा किया. याचिकाकर्ता ने कहा कि धन का वितरण और मुफ्त तोहफे का वादा खतरनाक स्तर तक जा पहुंचा है.

    याचिकाकर्ता को फटकार

    प्रधान न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता को शपथ पत्र में केवल 2 दलों का नाम लिखने पर फटकार लगाते हुए कहा कि आपने केवल गिनी-चुनी पार्टियों और राज्यों का नाम लिया तथा बहुत सिलेक्टिव रहे. इतने पर भी कोर्ट ने याचिका में उठाए गए कानूनी मुद्दे को देखते हुए नोटिस जारी कर दिया. याचिकाकर्ता ने कहा कि मतदाताओं को लुभाने के लिए जनता के पैसों से मुफ्त उपहार देने का वादा संविधान के अनुच्छेद 4, 162, 266(3) और 282 का उल्लंघन है.

    चुनावी वादों को भ्रष्ट प्रथा नहीं कह सकते

    सुप्रीम कोर्ट ने ‘एस सुब्रमण्यम बालाजी विरुद्ध तमिलनाडु’ मामले में 5 जुलाई 2013 को दिए अपने फैसले में कहा था कि चुनाव घोषणापत्र में किए गए वादे को जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 के तहत भ्रष्ट प्रथा घोषित नहीं कर सकते. इतने पर भी मुफ्त उपहार देने के वादे से जनता निश्चित रूप से प्रभावित होती है. यचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा कि अधिकांश राज्य कर्ज में गले तक डूबे हुए है. चुनाव में मुफ्त तोहफे देने की होड़ लगी हुई है. जब कोई पार्टी चुनाव में जीतेगी और इन चुनावी वादों को पूरा करेगी तो अगली सरकार की वित्तीय व्यवस्था पूरी तरह तहस-नहस हो जाएगी.

    उन्होंने कहा कि यूपी पर 6.1 लाख करोड़, पंजाब पर 2.9 लाख करोड़, उत्तराखंड पर 68,000 करोड़ तथा गोवा पर 18,844 करोड़ रुपए का सार्वजनिक कर्ज का बोझ बकाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई आदेश जारी करने से पहले सभी पार्टियों से बात करनी होगी लेकिन फिलहाल केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर उनसे मुफ्त तोहफे के मुद्दे पर 4 सप्ताह के भीतर जवाब मांगा गया है. यह पूछा जा रहा है कि इस तरह के अव्यावहारिक चुनावी वायदे को कैसे नियंत्रित किया जाए?

    राज्यों पर आर्थिक भार

    फ्री वादे से राज्यों पर आर्थिक भार बढ़ने के साथ जरूरी योजनाएं अटक जाती हैं. चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित होती है. खैरात पाने से लोग मुफ्तखोर व आलसी हो जाते हैं और उत्पादकता घट जाती है. अमेरिका में ऐसे प्रलोभन पर पाबंदी है. वहां नियम है कि सार्वजनिक पैसे से निजी गिफ्ट नहीं दिए जा सकते. वेनेजुएला 1980 में तेल कीमतें उच्च स्तर पर रहने से अमीर देश था. इसके बाद वहां की सरकार ने खाने से लेकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट, सब फ्री कर दिया. किसानों का कर्ज माफ कर दिया गया. फिर ऐसी मंदी आई कि वेनेजुएला बेहद गरीब होकर रह गया.