पेगासस जासूसी, सुको के केंद्र सरकार पर कड़े तेवर

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    विपक्ष की मांग के बावजूद केंद्र सरकार का यही रवैया रहा कि पेगासस जासूसी मामले को न तो स्वीकारेंगे और न इसकी जांच कराएंगे. इस विवाद को लेकर संसद का मानसून सत्र हंगामे के बीच ही समाप्त हो गया. अब सुप्रीम कोर्ट ने इजराइली सॉफ्टवेयर पेगासस से जासूसी किए जाने की जांच को लेकर दायर याचिकाओं पर सरकार से 10 दिनों के भीतर जवाब मांगा है. आरोप है कि पेगासस का इस्तेमाल कर सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रमुख नागरिकों, राजनेताओं और पत्रकारों की जासूसी कराई गई जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी व 2 वर्तमान केंद्रीय मंत्रियों की जासूसी कराए जाने का आरोप है. इसे प्रेस की आजादी से भी जोड़कर देखा जा रहा है. 40 पत्रकारों सहित 300 लोगों के फोन टेप किए जाने की चर्चा रही है.

    सरकार की दलील

    केंद्र सरकार का पक्ष रखने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत व जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ को बताया कि यह एक संवेदनशील मामला है, जिससे संवेदनशीलता से निपटा जाना चाहिए. सरकार अपने रुख पर कायम है और इस्तेमाल किए जा रहे सुरक्षा तंत्र के बारे में जानकारी सार्वजनिक तौर पर नहीं दे सकती. सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि वह सारे पहलुओं के निरीक्षण के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करेगी. याचिका दायर करने वालों की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि वह भी नहीं चाहते कि केंद्र राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर डालने वाली किसी भी जानकारी का खुलासा करे.

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि उसने सोचा था कि सरकार एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करेगी लेकिन इस मामले में सिर्फ सीमित हलफनामा दाखिल किया गया. सरकार को ऐसा खुलासा करने की जरूरत नहीं है जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता हो. अदालत 10 दिन बाद इस मामले को सुनेगी. अगर सक्षम प्राधिकार हमारे सामने हलफनामा दायर करे तो इसमें क्या परेशानी है? हम राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में कोई शब्द नहीं चाहते.

    पेगासस का अर्थ

    पेगासस शब्द कुछ लोगों के लिए नया होगा. ग्रीक पुराण कथाओं में पेगासस उड़नेवाला सफेद घोड़ा था जो ओलंपिस पर्वत देवता का बेटा था. संयोग की बात है कि ओलम्पिक खेलों के समय ही पेगासस जासूसी का मुद्दा उछला जबकि यह 2019 का मामला था जिसने अब तूल पकड़ा है. जहां तक जासूसी या स्नूपिंग का सवाल है, यह राष्ट्रीय सुरक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है. दुनिया के सभी देशों की सरकारें जासूसी कराती हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर रहते हुए रिचर्ड निक्सन ने विपक्षी नेताओं की बगिंग (जासूसी) करवाई थी. इसे वाटरगेट कांड का नाम दिया गया था. इसकी वजह से निक्सन पर महाभियोग चला और उन्हें राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा था. तब पत्रकार जैक एंडरसन ने वाटरगेट कांड का भंडाफोड़ किया था.

    तकनीक काफी आगे बढ़ गई

    अब साइबर जासूसी हाईटेक हो चुकी है और यह अरबों रुपए का उद्योग है. इजराइल ने कई देशों की सरकार को पेगासस स्पाई सॉफ्टवेयर बेचा है. न केवल सरकारें, बल्कि कारपोरेट भी प्रतिस्पर्धी कंपनियों की हैकिंग या जासूसी करती हैं. कारोबार या सौदे से जुड़ी खास जानकारी हासिल कर अरबों का मुनाफा कमाया जाता है. ईमेल व फोन कॉल की जासूसी से हर वित्तीय लेन-देन पर नजर रखी जाती है. हैकर इसी काम में लगे रहते हैं. भारत का आईटी सेक्टर भी काफी मजबूत है. खुफियागिरी करना राष्ट्रीय सुरक्षा का अहम हिस्सा है. इसके बिना दुश्मन देश की चाल का पता ही नहीं लग सकता. इसके बावजूद अपने ही देश में विपक्षी नेताओं व पत्रकारों की जासूसी किए जाने को आपत्तिजनक माना जा रहा है. संसद में इस मुद्दे पर चर्चा की मांग स्वीकारी नहीं गई लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट पूछ रहा है तो सरकार को जवाब देना ही पड़ेगा.