ताइवान हो आई नैन्सी, चीन ताकता रह गया

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    चीन और अमेरिका के बीच भारी तनाव की कोई परवाह न करते हुए अमेरिकी कांग्रेस (संसद) की स्पीकर नैन्सी पलोसी ने ताइवान यात्रा की. उन्होंने वहां की संसद को संबोधित किया और ताइवान के 43 वर्ष पहले ताइवान के साथ खड़े रहने का जो वादा किया था, वह उस पर आज भी अडिग है. अमेरिका हर पल उसके साथ है और उस ताइवान की दोस्ती पर गर्व है. चीन झुंझलाता, तपतपाता और ताकता रह गया. लड़ाकू विमानों की सुरक्षा के साथ नैन्सी ने ताइवान यात्रा का अपना मिशन पूरा किया जो कि चीन के लिए जबरदस्त चुनौती थी.

    ताइवान का पुराना नाम फारमोसा था. जब कम्युनिस्ट फौजों (पीपुल्स रिपब्लिकन आर्मी) ने माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीन पर कब्जा किया तो चीन के लोकप्रिय नेता रहे च्यांग काई शेक को अपने 20 लाख सैनिकों के साथ चीन से भागकर फारमोसा आना पड़ा था. ताईवान की सरकार शुरू से ही लोकतांत्रिक और कम्युनिस्ट विरोधी है. चीन बार-बार ताईवान पर अपना हक जताता है लेकिन ताइवान को अमेरिका का संरक्षण होने से वह कुछ कर नहीं पाया. लगभग 7 दशकों में ताइवान ने भी अपनी सैन्य शक्ति काफी बढ़ा ली है. प्रशांत क्षेत्र में ताइवान चीन की आंख की किरकिरी बना हुआ है. जैसे ही ताइवान अन्य देशों से संपर्क बढ़ाता है चीन बुरी तरह चिढ़ जाता है.

    25 वर्ष बाद अमेरिकी स्पीकर का दौरा

    1997 में अमेरिका की संसद के तत्कालीन स्पीकर ने ताइवान का दौरा किया था. इसके 25 वर्षों बाद नैन्सी पलोसी 2 दिनों के दौरे पर वहां गई. चीन ने अमेरिका को गंभीर परिणामों की चेतावनी दी थी फिर भी इरादों की पक्की नैन्सी ने यह यात्रा की. वह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की तीखी आलोचना रही है. उन्होंने बीजिंग के थियान आन मेन चौराहे पर लोकतंत्र समर्थक छात्रों के नरसंहार का उल्लेख किया और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अमेरिका समर्थन का भरोसा दिलाया.

    चीनी धमकी के असर

    नैन्सी की ताइवन यात्रा से बौखला चीन ने ताइवान के आसपास समुद्री व हवाई मार्ग रोक दिया और फौजी कवायद (ड्रिल) शुरू कर दी जो 4 दिनों तक चलेगी. आगे चलकर यदि चीन ने ताइवान के नियंत्रण वाले किनमेन और मात्सू द्वीपों पर हमला करने की सोची तो तनाव और भड़क सकता है. चीन को पता है कि जब रूस को यूक्रेन पर हमले में सफलता नहीं मिल पाई तो वह भी ताइवान के पास भी वायुसेना, नौसेना व थल सेना है तथा आधुनिक शस्त्र हैं. साथ ही अमेरिका का पूरा सहयोग व समर्थक है. अमेरिका ताइवान के बहाने चीन को चुनौती देता है.

    अमेरिका पर वादा खिलाफी का आरोप

    चीन और अमेरिका के 1979 के संयुक्त घोषणापत्र में अमेरिका ने कहा था कि वह चीन की एकमात्र वैध सरकार के तौर पर पीपुल्स रिपब्लिक आफ चाइना को मान्यता देता है. वह ताइवान से सिर्फ सांस्कृतिक और वाणिज्य संबंध ही रखेगा. चीन का आरोप है कि अमेरिका अब वन चाइना पॉलिसी के उस वादे पर कायम नहीं दिखाई दे रहा. वह ऐसे कदमों से प्रशांत क्षेत्र व तनाव उत्पन्न कर रहा है. ऐसी स्थिति में चीन चुपचाप नहीं बैठेगा. अमेरिका को ‘एक चीन’ सिद्धांत का पालन करना चाहिए. ताइवान चीन का अभिभाज्य अंग है. 140 करोड़ चीनी अपनी संप्रभुता की रक्षा करेंगे.

    गत सप्ताह चीन के राष्ट्रपति शी जिन विंग ने अमेरिका को ताइवान के संबंध में एक पक्षीय कदम उठाने के बारे में चेतावनी दी थी और कहा था कि जो आग से खेलते हैं, वे नष्ट हो जाते हैं.