अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हिंसा व अराजकता चरम पर

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    अफगानिस्तान का दुर्भाग्य है कि वह फिर पूरी तरह वहशी दरिंदे तालिबान के कब्जे में आ गया है. अमेरिकी सेना और नाटो फोर्सेस की वापसी के बाद ऐसा होना ही था. बेहद तेजी के साथ तालिबान ने मुल्क के तमाम बड़े शहरों पर कब्जा कर लिया और राजधानी काबुल तक आ पहुंचे. कहीं-कहीं तो सरकारी फौज व प्रशासन ने बगैर किसी प्रतिरोध के तालिबान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. आधुनिक हथियारों, टैंक और बख्तरबंद गाड़ियों से लैस तालिबान के पास सिर्फ एयरफोर्स नहीं है.

    मजार-ए-शरीफ के बाद काबुल पर भी तालिबान का कब्जा हो गया है. राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भागने पर मजबूर हुए लेकिन ताजिकिस्तान ने भी उनके विमान को अपने यहां उतरने नहीं दिया. अब अशरफ गनी अमेरिका जा सकते हैं. अली अहमद जलाली नई अंतरिम सरकार के प्रमुख हैं. अमेरिकी फौज लौट जाने के बाद अफगानिस्तान की सरकारी सेना में इतनी हिम्मत नहीं बची कि तालिबान का मुकाबला कर सके.

    अफगानिस्तान में भीषण अराजकता और अफरातफरी का माहौल है. अफगान और वहां रहने वाले विदेशी नागरिकों में बाहर निकलने के लिए भगदड़ मची हुई है. काबुल हवाई अड्डे पर भगदड़ में 5 लोगों की मौत हो गई. लोग अपने सारे दस्तावेज लेकर वीजा बनवाने में लगे हैं, फिर चाहे किसी भी देश का वीजा बन जाए. अपनी जीवन भर की कमाई निकालने के लिए एटीएम के सामने खड़े रहने को मजबूर हैं. कोई वहां रुकना नहीं चाहता. विभिन्न देशों के दूतावास भी अपने कर्मचारियों को स्वदेश भेजने में लगे हुए हैं. ऐसा माना जा रहा है कि चीन पाकिस्तान के मार्फत तालिबानियों से सौदेबाजी करने की फिराक में है.

    ट्रम्प ने बाइडन को आड़े हाथ लिया

    अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प ने प्रेसीडेंट जो बाइडन को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि क्या आप मुझे मिस कर रहे हैं? क्या मैं आपको याद आ रहा हूं? यह पूरा मामला बेहद दुखद है. यदि मैं राष्ट्रपति होता तो इस तरह के हालात नहीं होते. ट्रम्प ने आक्रामक रवैया दिखाते हुए कहा कि यह अमेरिकी इतिहास की सबसे बड़ी हार है. बाइडन को अफगान मुद्दे में विफलता को लेकर इस्तीफा देना चाहिए. बाइडन ने राष्ट्रपति बनने पर अपना चुनावी वादा निभाते हुए दशकों से अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी सैनिकों को स्वदेश वापस बुला लिया. अमेरिका ने अफगानिस्तान में हथियारों और उपकरणों पर 20 वर्षों में 65 लाख खरब डॉलर खर्च किए. तालिबानियों के कब्जे के साथ यह पैसा पानी में चला जाएगा.

    रूस और ब्रिटेन मान्यता नहीं देंगे

    तालिबान की हुकूमत को रूस और ब्रिटेन मान्यता नहीं देंगे. ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन ने कहा कि हमें तालिबानी शासन हरगिज मंजूर नहीं है. अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने देश नहीं छोड़ा है. वे तालिबान के साथ बातचीत करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि तालिबानी उनकी कोई बात मानेंगे. तालिबान देश को बर्बरतापूर्ण दकियानूसी युग में ले जाना चाहते हैं जिसमें शिक्षा, संस्कृति, कला, संगीत, फिल्म, नाटक, फैशन आदि के लिए कोई स्थान नहीं है. इसी तालिबान ने बामियान स्थित गौतम बुद्ध की विशाल प्रतिमाएं नेस्तनाबूत कर दी थीं. वे महिलाओं की शिक्षा के कट्टर विरोधी हैं. तालिबान लड़ाके 15 से 45 साल तक की महिलाओं को जबरन अपने कब्जे में ले रहे हैं. वे बेवजह खून-खराबा करते हैं.

    लड़कियों की पढ़ाई की हिमायती मलाला यूसुफजई को तालिबान ने सिर में गोली मारी थी लेकिन वह जिंदा बच गई और उसे शांति का नोबल प्राइज भी मिला था. तालिबान ने भारत द्वारा अफगानिस्तान को दिए 2 बिलियन डॉलर के सहयोग को ठीक बताते हुए धमकी दी कि वह यहां अपनी फौज भेजने की गलती न करे. भारत के सहयोग से ही अफगानिस्तान में संसद भवन, हेरात बांध विद्युत प्रकल्प और सड़कों का निर्माण हुआ है. अफगानिस्तान में सदियों से हिंदू और सिख समुदायों के लोग रहते आ रहे हैं जिनकी जान इस समय खतरे में है.