गरीबी मिटाने वाले बड़े-बड़े दावे करने वाली सरकार का सच आया सामने

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    देश की जनता से ‘अच्छे दिन आएंगे’ का लुभावना वादा करन वाली सरकार को सत्ता में आए हुए 8 वर्ष पूरे हो चुके हैं. इसी सरकार के मुखिया ने विदेश से काला धन लाकर हर देशवासी के बैंक खाते में 15 लाख रुपए जमा करने की बात की थी जिसे कि बाद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चुनावी जुमला करार दिया. बाद में गरीबी और बेरोजगारी दूर करने का इलाज बताते हुए कहा गया था कि पकौड़े बेचकर भी रोजगार किया जा सकता है.

    इस तरह की भूल भुलैया में भोली-भाली जनता को भटकाया जाता रहा. जहां बढ़ती महंगाई और बेराजगारी जैसे ज्वलंत मुद्दे चुनौती देते नजर आए, जनता को धार्मिक उन्माद की ओर मोड़ दिया गया. इतनी सधी हुई राजनीति सिर्फ हमारे देश के नेता कर सकते हैं. विदेश में किसी भी नेता के पास इतनी सूझबूझ और क्षमता चिराग लेकर ढूंढने से भी नहीं मिलेगी.

    आर्थिक असमानता बढ़ी

    विपक्ष की किसी पार्टी ने नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने इस बात की पुष्टि की है कि देश में आर्थिक असमानता बढ़ती चली जा रही है. यह गैर बराबरी इतनी जबरदस्त है कि देश की केवल 1 प्रतिशत शीर्ष आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का 5 से 7 प्रतिशत हिस्सा है. अर्थात ये सर्वाधिक धनवान एवं साधन संपन्न लोग हैं. दूसरी ओर देश की 130 करोड़ की आबादी के 15 प्रतिशत कामकाजी लोग 5,000 रुपए प्रतिमाह से कम कमाते हैं.

    यह है देश के श्रमबल का हाल जो पसीना बहाकर कड़ी मेहनत के बावजूद सिर्फ इतनी आय अर्जित कर पाते हैं. सोचा जा सकता है कि वे बेचारे कैसे अपना परिवार चलाते होंगे. देश के महज 10 प्रतिशत लोग औसतन 25,000 रुपए प्रति माह कमाते हैं. देश की कुल आय में ऐसे मध्यमवर्गीयों की हिस्सेदारी 30 से 35 प्रतिशत है.

    50 फीसदी क पास नहीं के बराबर संपत्ति

    यह ज्वलंत सत्य है कि देश की 50 प्रतिशत आबादी के पास नहीं के बराबर संपत्ति है, यदि राष्ट्रीय आय में हिस्सेदारी की बात की जाए तो देश के टॉप 1 प्रतिशत सुपर रिच लोगों के पास राष्ट्रीय आय का 22 प्रतिशत हिस्सा है. इसके बाद के 10 प्रतिशत टॉप लोगों के पास 57 फीसदी दौलत है.

    निचले स्तर के 50 फीसदी लोगों के पास 13 प्रतिशत राष्टीय आय की हिस्सेदारी हैं तथा अन्य लोग 8 प्रतिशत में गुजर बसर करते हैं. 2019 के आंकड़ों के मुताबिक शहरी क्षेत्र के नौकरी पेशा लोगों की औसत मासिक आय 12,090 रुपए और ग्रामीण क्षेत्र के नौकरी पेशा कीआय 14,031 रुपए थी.

    गरीबों की आय घटी

    पीरिवाडिक लेबर फोर्स सर्वे 2019-20 के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए पीएम आर्थिक सलाहकार परिषद ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि देश के टॉप 1 प्रतिशत लोगों की कमाई जहां 2017 से 2020 के 3 वर्षों के बीच 15 प्रतिशत की दर से बढ़ी वहीं 10 प्रतिशत सबसे कम आय वाले लोगों की आमदनी इस दौरान 1 प्रतिशत घट गई. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच घरेलू संपत्ति और मासिक कमाई में बहुत बड़ा अंतर है.

    देश के टॉप 10 प्रतिशत लोगों की कुल आय 2017-2020 के दौरान 81 प्रतिशत की दर से बढ़ी. इस सर्वे से यही प्रतीत होता है कि खुली आर्थिक नीति आने के बाद असमानता कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही है. मुट्ठी भर लोगों के हाथों में भरपूर धन है जिसमें लगातार इजाफा होता जा रहा है, लकिन अवसरों से वंचित मध्यम व गरीब वर्ग की आय कम होने के साथ दिक्कतें बढ़ती ही जा रही हैं.