भारत जी-20 में बुनियादी ढांचे की समझ भविष्य के शहरों का निर्माण

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    किसी क्षेत्र की आर्थिक स्थिति की पहचान इसकी बुनियादी सुविधाओं की गुणवत्ता है. आर्थिक किास के कारक के रूप में, दुनिया भर की सरकारों द्वारा बुनियादी ढांचे पर खर्च को रोजगार और बढ़े हुए सामाजिक-आर्थिक विकास के उत्प्रेरक के रूप में महत्व दिया जाता है. विश्व बैंक का कहना है कि बुनियादी ढांचे के खर्च में 10 प्रतिशत की वृद्धि का सकल घरेलू उत्पाद में 1 प्रतिशत वृद्धि से सीधा संबंध है. भारत को 2022 में जी-20 की अध्यक्षता मिलने के साथ, बुनियादी ढांचे को ‘सुधैव कुटुम्बकम’ या एक दुनिया, एक भविष्य के चश्मे से देखा जा रहा है. आईडब्ल्यूजी में भारत का नया योगदान ‘फाइनेंसिंग सिटीज ऑफ टुमॉरो’ को प्रमुखता से प्राथमिकता देना होगा.

    वर्ष 2050 तक दुनिया की लगभग दो-तिहाई आबादी शहरी क्षेत्रों में रहेगी, इसलिए अगली पीढ़ी के शहरीकरण क लहर विकासशील और विकसित देशों के महाद्वीपों में फैलेगी. इसमें शहरीकरण और जीडीपी के बीच मजबूत परस्पर संबंध होने के कारण वैश्विक विकास को महत्वपूर्ण तरीके से बढ़ाने की क्षमता है. शहरों में 80 प्रतिशत से अधिक सकल घरेलू उत्पाद होने के साथ, शहरीकरण एक अच्छा काम हो सकता है बशर्ते इनका अच्छा प्रबंधन और रखरखाव हो.

    पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने परिपूर्णता की नीति के माध्यम से शहरों में जन उपयोगी सेवाओं को आगे बढ़ाया है, चाहे वह प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत आवास हो, स्वच्छता (स्वच्छ भारत), पेयजल (हर घर जल), शहरी बुनियादी ढांचे का नवीनीकरण और कायाकल्प (अमृत), बड़े पैमाने पर परगमन विकल्पों में तेजी लाने यानी मेट्रो-बीआरटीएस और प्रौद्योगिकी आधारित शहरों के आधुनिकीकरण (स्मार्ट सिटी) आदि क्यों न हो. विकासशील और विकसित देशों को एक ऐसे भविष्य की ओर देखना चाहिए जिसकी तरफ अब तक दुनिया के किसी भी देश का ध्यान नहीं गया है. शहरों पर जलवायु के घातक प्रभावों और वित्तीय लचीलेपन तथा भविष्य के शहरों में बसने वाले लोगों के विविध समूहों को देखते हुए, भविष्य के शहरों को टिकाऊ, लचीला और समावेशी बनाया जाना चाहिए.

    जिस तरह पुणे विश्वविद्यालय 16 व 17 जनवरी को भारत की जी-20 की अध्यक्षता के तहत आईडब्ल्यूजी की पहली बैठक की मेजबानी की तैयारी कर रहा है, यह खुद को याद दिलाने का एक अच्छा समय है कि भविष्य की चुनौतियों का समाधान करने के लिए, शहरों को एक नया अवतार लेना चाहिए- आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और वित्तीय रूप से सशक्त. नगरपालिका सरकारों को न केवल शहरों के लिए रणनीति की योजना बनानी चाहिए बल्कि सपनों को साकार करने के लिए संसाधन भी खोजने चाहिए.

    आईडब्ल्यूजी की पहली बैठक के साथ पुणे विश्वविद्यालय में शहरी प्रशासन पर नगर निगम आयुक्तों के लिए एक पूरक संवाद होगा. भविष्य के शहरों के लिए चुनौतियों और वित्तपोषण की रणनीति के ईद-गिर्द एक अन्य कार्यक्रम एडीबी द्वारा आयोजित किया जाएगा. इस वर्ष की अध्यक्षता से परिकल्पित उत्कृष्टता के मानकों की दिशा में, इससे अच्छा और क्या होगा कि ुनिया की उन सबसे पुरानी मूलभूत चीजों को वापस लाया जाए तो निर्माण या विकास के लिए आवश्यक हैं जैसे कि प्रभाशाली लेनिक विनम्र, विस्तृत लेकिन क्षेत्रीय, कनेक्टिंग लेकिन वितरित-इन्फ्रास्ट्रक्चर!

    – वी. अनंत नागेश्रन और अपराजिता त्रिपाठी