आखिर कब होगा दहेज-दानव का अंत

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    दहेज को भेंट-उपहार या स्त्रीधन किसी भी नाम से संबोधित करें, मूलरूप से विवाह के समय बेटी को दी जानेवाली धनराशि है. यह नकदी, आभूषणों, वस्त्रों, बर्तनों, फर्नीचर, टू व्हीलर, कार या अन्य विविध रूपों में होती है. ससुराल में बेटी सुखी रहे, यह सोचकर अधिक से अधिक दहेज देने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. दहेज विरोधी कानून का इस पर कोई असर नहीं पड़ा है. साधनसंपन्न लोगों ने दहेज को अंधाधुंध बढ़ावा दिया है. बेटी को उच्च शिक्षा व अच्छे संस्कार देकर योग्य वर से विवाह करने में कितने ही माता-पिता के सामने दहेज जुटाने की समस्या आती है. कितने ही लोग ऐसे हैं जो अपने बेटे की वहीं  शादी करते हैं जहां दहेज में मोटी रकम मिले. 

    यह विवाह नहीं, बल्कि सौदेबाजी होती है जिसमें वर का पिता लड़की के पिता से पूछता है- बताइए, विवाह में आपका संकल्प क्या है? कितना खर्च कर पाएंगे? लड़की वालों पर विवाह का आयोजन, बारात की खातिरदारी, भेंट-उपहार के खर्च के अलावा दहेज देने की जिम्मेदारी रहती है. ऐसे भी मामले होते हैं जब एक ही परिवार में अधिक दहेज लाने वाली बहू को इज्जत दी जाती है, जबकि कम दहेज लाने वाली दूसरी बहू से दुर्व्यवहार किया जाता है. वास्तव में दहेज समाज का अभिशाप है. इस दहेज रूपी दानव की वजह से कितनी ही बहुओं को प्रताड़ना या उलाहना झेलना पड़ता है! कुछ तो इतनी सताई जाती हैं कि आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाती हैं.

    सुशिक्षित लोग भी अपवाद नहीं

    सिर्फ दकियानूसी लोगों में ही दहेज की प्रथा नहीं है, पढ़े-लिखे लोग जैसे प्रोफेसर, डॉक्टर, इंजीनियर भी दहेज लोभी होते हैं. डॉक्टर का पिता कहता है कि बेटे का क्लीनिक खोलने में पैसा लगेगा. यह कन्या पक्ष पर दबाव है कि मोटी रकम का इंतजाम करे. बेटी को ससुराल में सुखी देखने की खातिर उसका पिता कर्ज लेता है या अपनी कुछ जमीन-जायदाद बेचकर पैसा जुटाता है. आश्चर्य तो वहां होता है जब प्रेमविवाह के बाद भी वरपक्ष कन्यापक्ष से दहेज की मांग करता है. 

    यह एक विचित्र मानसिकता है. कुछ लोग इस तरह समझाते हैं कि बहू के रूप में लक्ष्मी घर आती है तो उसे साथ में लक्ष्मी (धन) लेकर आना चाहिए. दो आत्माओं के पवित्र बंधन में दहेज एक बड़ी बाधा है. विवाह में वर व कन्यापक्ष द्वारा खुशी से किया जानेवाला खर्च अपनी जगह है, परंतु दहेज के लिए कदापि दबाव नहीं डाला जाना चाहिए क्योंकि हर वधू का पिता इतना संपन्न नहीं होता. जिस व्यक्ति की कई बेटियां हों, वह कहां से हर एक के लिए दहेज का इंतजाम करेगा?

    95 प्रतिशत शादियों में दहेज

    यह कटु सत्य है कि देश की 95 फीसदी शादियों में दहेज लिया-दिया जाता है. 1961 में दहेज गैरकानूनी घोषित होने और दहेज लेने-देने वालों के खिलाफ आपराधिक कानूनों के तहत कर्रवाई का नियम होने के बावजूद दहेज का सिलसिला जारी है. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, प्रति घंटे 1 महिला दहेज की बलिवेदी की भेंट चढ़ा दी जाती है. सभी धर्मों में दहेज की प्रथा है. भारत में 90 प्रतिशत नवविवाहित युगल दूल्हे के परिवार के साथ रहते हैं. सास-ससुर, जेठ-जेठानी, ननद, देवर भी अपने लिए उपहार या नेग-दस्तूर चाहते हैं. केरल में बीते दशकों में दहेज प्रथा का चलन बढ़ा है जबकि महाराष्ट्र, तमिलनाडु, ओडिशा व बंगाल में दहेज में कमी आई है.