उद्धव-राणे के झगड़े में किसका होगा फायदा, महाराष्ट्र की राजनीति में दूर तक सुनाई देगी इस थप्पड़ की गूंज

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    महाराष्ट्र की राजनीति मुंबई केन्द्रित होती है और मंगलवार को पूरे दिन राज्य में जो अमंगल हुआ, उसका केन्द्र भी मुंबई ही था. मुंबई केन्द्रित पार्टी शिवसेना और उसके नेता महाविकास आघाड़ी के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और किसी समय इसी शिवसेना के कोटे से मुख्यमंत्री बने नारायण राणे के बीच जो एकदिवसीय महाभारत हुआ, दोनों का केंद्रबिन्दु मुंबई ही है. 

    अब महाराष्ट्र की जनता इस सवाल का जवाब खोज रही है कि आखिर उद्धव और राणे के बीच हुए इस महाभारत का लाभ कौन लेगा या किसको होने जा रहा है? जाहिर है, इतनी जल्दी इस प्रश्न का जवाब नहीं मिलेगा और इस मौखिक थप्पड़ की गूंज राज्य की राजनीति में बहुत अरसे तक सुनाई देगी. 

    राणे का रुआब कितने दिन झेलेगी बीजेपी

    पूरा झगड़ा ही इस बात का है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि नारायण राणे को हवालात जाने की नौबत आ गई थी? राणे का राज्य की राजनीति में एक अलग ही रुआब है. पहली बार वे तब चर्चा में आए थे, जब मनोहर जोशी को हटाकर शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया था. 18 महीने के भीतर ही राज्य से युति की सरकार विदा हो गई और राणे विपक्ष में आ गए. लेकिन सत्ता की मधुमक्खी ने उन्हें ऐसा दंश लगाया कि वे फिर कुर्सी के मोह में आ गए. शिवसेना में उनका दम घुटने लगा था और वे जल्दी ही कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए. कांग्रेस में आते ही उन्हें मुख्यमंत्री बनने के सपने दिखाई देने लगे. 

    जब यह सपना पूरा नहीं हुआ तो उन्होंने सोनिया गांधी की ‘बुद्धि’ पर सवाल उठाकर स्व. अहमद पटेल को जमकर आड़े हाथों लिया था. कांग्रेस द्वारा उद्योग मंत्री बनाए जाने के बाद भी उनके मन को चैन नहीं मिला और वे बीजेपी के मजबूत होते ही उसमें शामिल हो गए. बीजेपी ने बहुत वर्षों तक उनको कुछ नहीं दिया. तब देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री थे और राणे के लिए दिल्ली और मुंबई में कोई ‘स्कोप’ नहीं था. राणे की छटपटाहट बढ़ती जा रही थी और मोदी-शाह भी उनके सदुपयोग का कोई मौका खोज रहे थे. 

    बंगाल में बीजेपी की बड़ी पराजय ने मोदी-शाह और आरएसएस को यह समझा दिया कि अब क्षेत्रीय लड़ाकों को तैयार कर युद्ध में झोंका जाएगा. महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव को तो अभी वक्त है लेकिन प्रतिष्ठा से पूर्ण मनपा चुनाव, जिसमें मुंबई, पुणे, नागपुर सहित एक दर्जन के करीब महानगरपालिकाओं के चुनाव फरवरी माह में होंगे, जो किसी बड़े युद्ध से कम नहीं है. नारायण राणे मूलत: कोंकण के नेता हैं लेकिन मुंबई में उनकी स्टाइल को पसंद करने वाले कुछ लोग हैं. बीजेपी के पास मुंबई में राणे-पैटर्न का कोई नेता नहीं होने से हाल ही में कैबिनेट में उनको जगह देकर बीएमसी फतह करने की जिम्मेदारी दी गई. 

    सवाल यह है कि केन्द्रीय मंत्री बनने के बाद जब राणे पहली बार पश्चिम महाराष्ट्र और कोंकण में आए तूफानग्रस्त क्षेत्र का दौरा करने गए थे, तब बीजेपी नेता प्रवीण दरेकर को जोर से हड़का दिया था. बीजेपी नेता भी उनके लहरी स्वभाव से डरते हैं. ऐसे में यह पूछा जा रहा है कि राणे का रुआब बीजेपी कब तक झेलेगी? शायद बीएमसी के चुनाव तक तो नहीं?

    मातोश्री से प्यार, उद्धव से दुश्मनी

    69 वर्षीय नारायण राणे का मातोश्री से प्यार कभी छिपा नहीं रहा. लेकिन उद्धव से उनकी दुश्मनी जगजाहिर थी. 61 वर्षीय उद्धव उस समय पिता बाल ठाकरे के साथ राजनीति के गुर सीख रहे थे. तब राणे और ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे के बीच घनिष्ठता बढ़ती जा रही थी. शेर बूढ़ा हो रहा था और मातोश्री पर उद्धव की कमान मजबूत होती जा रही थी. पहले राज रवाना हुए और तभी राणे भी निकल गए. 

    मातोश्री पर उद्धव का कब्जा हो गया और शिवसेना पर भी. बीजेपी के साथ दोस्ती के कारण लोकसभा चुनावों में शिवसेना को सफलता मिलती रही और मातोश्री पर मत्था टेकने वालों की संख्या कम नहीं हुई. बीएमसी भी मुट्ठी में होने से मुंबई महानगर पर भी ठाकरे परिवार का ही कब्जा रहा. 

    राणे को यह बात दिन-रात बबूल के कांटे की तरह चुभती है और इसी कांटे से शिवसेना का कांटा निकालने में अब बीजेपी जुटी हुई है. राणे के थप्पड़मार बयान से बीजेपी के नेता बिल्कुल सहमत नहीं हैं. यह अकेला संकेत काफी है कि कभी जरूरत पड़ी तो राणे का ‘किरीट सोमैया’ होते देर नहीं लगेगी. 

    नारायण के पलटवार का इंतजार

    कोंकण की राजनीति को समझने वाले यह बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि वहां के नेताओं में बिच्छू जैसे कुछ गुण पाए जाते हैं. अनिल परब का वायरल वीडियो जिस तरह पूरी दुनिया ने देखा, उससे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि राणे को रात हवालात में भेजने का कितना बड़ा इंतजाम किया गया था. 

    कोंकण के दूसरे नेता और शिवसेना विधायक भास्कर जाधव की प्रतिक्रिया भी यह थी कि इस गिरफ्तारी के बाद राणे जो अपने आपको सूरमा समझते थे, की घिग्घी बंध जाएगी. लेकिन राणे और उनके दोनों बेटों की उग्रता से पूरा महाराष्ट्र वाकिफ है. नितेश राणे ने बुधवार को टि्वटर पर एक वीडियो वायरल कर ठाकरे परिवार और शिवसेना को सीधी चुनौती दे डाली कि ‘करारा बदला लेंगे’. इस बदले का स्वरूप क्या होगा, इसका इंतजार पूरे महाराष्ट्र को रहेगा. निश्चित रूप से खूनखराबा नहीं होगा, इतनी उम्मीद तो सुसंस्कृत महाराष्ट्र के नेताओं से की ही जा सकती है. 

    राजनीति को दीमक जैसा खोखला कर रही प्रतिशोध की राजनीति

    2000 के दशक में राजनीति में प्रतिशोध की भावना बढ़ती चली गई. जब मौका मिला तब अमित शाह को तड़ीपार किया गया और जब मौका मिला तब राज्य प्रायोजित दंगे कराए गए. 2010-2020 वाले दशक में तो यह प्रतिशोध अपने चरम पर पहुंच गया, और 2014 के बाद तो क्या चल रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है. अपनी पार्टी की सत्ता नहीं है तो दूसरी पार्टी के नेताओं को सीबीआई, ईडी, आईटी से डराना अब न्यायसंगत बात हो गई है. 

    आलोचना होने पर ‘वो भी तो यही करते थे’ का उलाहना दिया जाने लगा. महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी की सरकार बनने के बाद मंत्रियों को जेल भेजने पर उतारू सरकारी संस्थाएं, विधायकों को बेखौफ डराने वाली अफसरशाही और राज्य सरकार को अस्थिर करने वाले तत्वों को हवा देने में दिल्ली से मुंबई तक कौन-कौन लगे हैं, यह भी धीरे-धीरे सार्वजनिक होने लगा है. राजनीति में शुचिता खत्म होती जा रही है. राजनेताओं में बैर बढ़ता जा रहा है. सत्ता और सिंहासन कभी भी स्थायी नहीं होते लेकिन जो शासक जनता के हित में काम नहीं करते, उनको लोग भी वक्त आने पर भयंकर सजा सुनाते हैं.