क्या गेमचेंजर साबित होगा भारत-अमेरिका परमाणु समझौता

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    – संजय श्रीवास्तव

    जो अमेरिका भारतीय परमाणु कार्यक्रमों का घोर विरोधी था, आज उसी का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अपने समकक्ष भारतीय के साथ बैठकर परमाणु तकनीक पर आपसी सहयोग की बात कर रहा है और इस बातचीत का अमेरिकी राष्ट्रपति बड़ी गर्मजोशी से स्वागत करते हुए कहते हैं, ‘‘इससे दुनिया के प्राचीनतम और सबसे विशाल लोकतंत्रों बीच संबंधों में और प्रगाढ़ता आएगी, पूरी दुनिया के लिए प्रौद्योगिकी और नवाचार का भविष्य तय होगा.’’ बेशक भारत की तमाम वैश्विक मंचों पर पहुंच, कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हमारी बढ़त और वैश्विक स्तर पर हमारी बढ़ती हैसियत इसकी वजह हैं.

    भारत और अमेरिका का तकनीकी तालमेल बहुत स्वाभाविक है क्योंकि अमेरिका विश्व की सबसे मजबूत तकनीकी अर्थव्यवस्था है तो भारत भी सूचना तकनीक का पावरहाउस है और अंतरिक्ष, परमाणु, आईए इत्यादि तमाम तरह की तकनीक में खासा अग्रणी भी.

    15 दिसंबर 2021 को भारत सरकार ने सेमीकंडक्टरों और डिस्प्ले मैन्यूफैक्चरिंग इकोसिस्टम के विकास हेतु कार्यक्रम बनाकर ‘इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन’ शुरू किया. अमेरिका जानता है कि हमारे पास सेमी-कंडक्टर डिजाइन का एक असाधारण टैलेंट पूल है. अब डोभाल और सुलीवन की वार्ता के बाद सेमीकंडक्टर्स उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए यूएस सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री एसोसिएशन द्वारा भारत इलेक्ट्रॉनिक सेमीकंडक्टर एसोसिएशन के साथ साझेदारी में एक टॉस्कफोर्स बन रहा है. यह दूरंदेशी कदम है, संसाार में सेमीकंडक्टर वार या चिपयुद्ध अब भू-राजनीतिक संघर्ष से बड़ा युद्ध है जिसमें अमेरिका और चीन के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा है.

    सेमीकंडक्टर इलेक्ट्रॉनिक और सैन्य उद्योग का एक अभिन्न अंग है. ताइवान, चीन, दक्षिण कोरिया, जापान बड़े सेमीकंडक्टर उत्पादक हैं. इनकी कंपनियों का वैश्विक बाजार में तकरीबन 90 फीसद की हिस्सेदारी है. अमेरिका सेमीकंडक्टर्स के निर्यात के लिए ताइवान पर निर्भर है. चीन ने दो साल से इस कारोबार में ताइवान को तबाह कर भारी बढ़त बना ली है. इसके चलते चीन क्लाउड कंप्यूटिंग और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक के क्षेत्र में अमेरिका को बड़ी चुनौती देता है. चीन का सेमीकंडक्टर उद्योग लगातार दस फीसद की दर से बढ़ता जा रहा है, 2024 तक इसकी सालाना बिक्री 114 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है. अब अमेरिका को यह चिपयुद्ध जीतना अत्यावश्यक है, क्योंकि इसके बिना वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता और कई जरूरी प्रौद्योगिकी में दबदबा खो देगा.

    ऐसे में चिप युद्ध का विजेता बनने के लिये उसके पास भारत से बेहतर साझीदार कोई नहीं है और इस क्षेत्र में पड़ोसी चीन के मुकाबले के लिए भारत को अमेरिका से बेहतर सहयोगी नहीं मिलेगा, भारत के दूसरे लाभ भी इसमें निहित हैं. अमेरिका इस वार्ता के साथ हाइपरसोनिक तकनीक के क्षेत्र में हमारे साथ आगे बढ़ने को तैयार है क्योंकि रूस और चीन से इस क्षेत्र में उसे कड़ी चुनौती मिल रही है. अमेरिकी सीनेटर जैक रीड तक स्वीकारते हैं कि हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक के मामले में अमेरिका भारत से पीछे है. अमेरिकी संसद की रिपोर्ट बताती है, ‘‘भारत हाइपरसोनिक तकनीक पर बहुत आगे बढ़ चुका है.

    उसने 2 हाइपरसोनिक विंड टनल बनाई हैं, जहां वह परमाणु हथियारों को ढोने में सक्षम और ध्वनि की गति से 13 गुना तेज गति वाली मिसाइलों का परीक्षण कर सकता है. अमेरिका का इस मामले में भारत की ओर झुकाव और उसकी रणनीति आवश्यकता को समझा जा सकता है. हमारे पास कुशल मानव श्रम पर्याप्त है यदि उन्नत तकनीक का साथ और मिले तो इस क्षेत्र में हम विश्व के अग्रणी देशों तक पहुंच सकते हैं. अमेरिका के सहयोग के बाद हम तेज रफ्तार पकड़ सकते हैं और विश्वस्तरीय उत्पादों से विश्व बाजार को आकर्षित कर सकते हैं. हम चीनी चुनौती का जवाब दे सकेंगे और अमेरिका को बाजार मिलेगा.

    जनरल इले्ट्रिरकल देश के साथ संयुक्त रूप से जेट इंजन का उत्पादन करेंगे. नासा जॉनसन स्पेस सेंटर में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के लिए उन्नत प्रशिक्षण का एक नया एक्सचेंज स्थापित करना भी बेहतर कदम है. स्पेस के क्षेत्र में अमेरिका, भारत से जानेगा कि कम लागत पर यान कैसे लॉन्च किए जाएं तो भारत को पता चलेगा कि अंतरिक्ष यान का आर्थिक उपयोग कैसे हो जबकि दोनों इस समस्या का हल निकालेंगे कि अंतरिक्ष यान की वापसी और लैंडिंग की चुनौतियों को कैसे कम करके इसे निरापद बनाया जाए.