GST पर केंद्र-राज्यों के बीच नहीं बनी बात

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आखिर जीएसटी (Goods and Services Tax) (GST), राजस्व में आने वाली कमी की भरपाई पर केंद्र तथा विपक्ष शासित राज्यों के बीच बात नहीं बन पाई तथा गतिरोध कायम रहा. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) ने साफ कह दिया कि राज्यों की जीएसटी रेवेन्यू में कमी का मुआवजा देने के लिए केंद्र सरकार बाजार से कर्ज नहीं उठा सकती क्योंकि इससे बाजार में कर्ज की लागत बढ़ सकती है. वित्त मंत्री ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 293 में कर्ज लेने संबंधी उल्लेख है. राज्यों को तय करने का अधिकार है कि वे क्या करना चाहते हैं. केंद्र ने कहा कि वह रिजर्व बैंक द्वारा शुरू की गई स्पेशल विंडो के तहत 1.1 लाख करोड़ रुपए का कर्ज ले सकते हैं. इस प्रावधान के प्रति 21 राज्यों ने सहमति जताई जबकि शेष राज्यों ने इस प्रक्रिया को अवैध बताया.

केरल के वित्त मंत्री टॉमस इसाक ने कहा कि यह घोषणा अवैध है कि 21 राज्यों को आप्शन-1 चुनने की अनुमति दी जाएगी. निर्मला सीतारमण ने कहा कि मुआवजे का भुगतान करने के लिए उपकर (सेस) का संग्रह पर्याप्त नहीं है. यह कमी अब उधार लेकर पूरी की जाएगी. जिन मामलों में मतभेद थे, उन पर कोई सहमति नहीं हो पाई. जीएसटी परिषद निश्चित रूप से उपकर की रकम व उपकर को एकत्रित करने की अवधि बढ़ा सकती है. उन्होंने कहा कि राज्यों का उधार लेने का मतलब अराजक स्थिति होना नहीं है. हम राज्यों को सुविधा प्रदान करेंगे ताकि उन्हें ऊंची ब्याज दरों का भुगतान नहीं करना पड़े जबकि अन्य को उचित दर पर कर्ज मिल सके. जो भी राज्य कर्ज लेना चाहें, उन्हें विकल्प-1 (आप्शन-1) के तहत सुविधा दी जाएगी. इसके अंतर्गत मुआवजे का भुगतान 5 वर्ष के बाद करना है, जिसके लिए अटार्नी जनरल की राय के मुताबिक जीएसटी परिषद का निर्णय लेना जरूरी है.

पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने कहा कि विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित 10 राज्यों ने मांग की थी कि विवाद हल करने की प्रणाली बनाई जाए तथा इस मुद्दे पर मंत्रियों के समूह का गठन किया जाए लेकिन बैठक में इस पर कोई सहमति नहीं हो पाई. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्रीय वित्त मंत्री ने काउंसिल में कोई निर्णय नहीं लिया. उन्होंने इस बारे में भी कोई बयान नहीं दिया कि वे क्या करने जा रही हैं? उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में इसकी घोषणा करना उचित समझा. निर्मला सीतारमण ने कहा कि जीएसटी काउंसिल एक सम्मानित संघीय संस्था है, वहां काफी चर्चाएं हुईं. मतभेद बने रहे और आम सहमति नहीं बन पाई. फिर भी मतभेदों को विवाद नहीं कहा जा सकता. क्या काउंसिल किसी सदस्य को उधार लेने से रोक सकती है? कोई सदस्य अन्य सदस्यों को उनकी मर्जी से कदम उठाने से कैसे रोक सकता है?