विकास को जंग लगा देगा जंक रेटिंग एजेंसियों ने दिखाया आईना, तकलीफ बढ़ी

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    आर्थिक मामलों में विदेशी रेटिंग एजेंसियां और भारतीय थिंक टैंक की सोच में काफी विरोधाभास देखा जा रहा है. भारत सरकार एवं तमाम संस्थान मसलन नीति आयोग, रिजर्व बैंक आदि विदेशी रेटिंग एजेंसियों के अनुमान, पूर्वानुमान को सिरे से खारिज करते और उसपर सवाल खड़ा करते आ रहे हैं. कई बार आईना देखना या दिखाना अच्छा नहीं लगता, संभवत: भारत सरकार के साथ भी ऐसा हो रहा है. उसके चमकते-दमकते दावे पर विदेशी एजेंसियां कालिख लगाने का काम कर रही हैं. इस बार एक और खतरा भारत के ऊपर मंडराने लगा है. विदेशी रेटिंग एजेंसियों ने भारत की रेटिंग ‘जंक’ श्रेणी में डालने की बात कही है.

    अगर ऐसा होता है तो यह देश और निवेशक के लिए आफत भरी खबर हो सकती है. जंक रेटिंग प्राप्त देश निवेश, कर्ज हासिल करने से मोहताज हो जाते हैं. न तो निवेश आता है और न ही विदेशी संस्थाएं कर्ज देती हैं. देश बदहाली के कगार पर पहुंच जाता है. ब्राजील और अर्जेंटीना इसके उदाहरण हैं. एजेंसियों का अनुमान है कि भारत का निवेश ग्रेड का दर्जा बामुश्किल बचा हुआ है. भारत का कर्ज कुल जीडीपी के 90 फीसदी तक पहुंच सकता है. अगर ऐसा होता है तो यह अपवाद स्थिति होगी. 55 फीसदी औसत वाले कई देश जंक श्रेणी में आ चुके हैं. भारत बचा हुआ है. कई एजेंसियों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि दूसरी लहर के बाद वे मुद्दे पर विचार करेंगी. भारत के एक पायदान नीचे आने का सीधा तात्पर्य यह होगा कि विकास का पहिया थम जाएगा. विदेशी निवेशक निवेश का जोखिम नहीं उठाएंगे.

    भारत निवेश की दुनिया से अलग-थलग पड़ जाएगा. दौर काफी नाजुक है. सोच-विचार कर निर्णय लेना होगा. निजी एजेंसियां सरकारी कब्जे में नहीं हैं. डरा-धमका कर काम नहीं हो सकता है. बेहतर होगा, नाजुक घड़ी से निपटने के लिए गंभीर मंत्रणा हो और सार्थक पहल कर देश को इससे बाहर निकालने के प्रयास तेज हों. सरकार की साख से कहीं अधिक देश की साख दांव पर लग गई है. ऐसा न हो कि 5 ट्रिलियन के चक्कर में वर्तमान साख को बचाना मुश्किल हो जाए.