SC में अब केवल 1 महिला जज बचीं न्या. इंदु मल्होत्रा का फैसला चर्चित रहा

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    न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा (Indu Malhotra) के रिटायरमेंट के बाद सुप्रीम कोर्ट (Supreme court)में केवल एक महिला जज ज्ञानसुधा मिश्रा शेष रह गई हैं. यह स्थिति सचमुच चिंतनीय है क्योंकि जब महिलाओं की सामाजिक बराबरी की बात होती है तो क्यों न सुप्रीम कोर्ट के कुल जजों में महिलाओं को अधिक स्थान दिया जाए. वहां जो रिक्त पद पड़े हैं वहां महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति की जा सकती है. महिला जजों (Woman Judges) की नियुक्ति इसलिए भी जरूरी है क्योंकि महिलाओं व बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों वे अधिक संवेदनशील तरीके से देख सकती हैं.

    इसी तरह जब कानून का परंपराओं और रूढ़ियों से टकराव आता है, तब भी वे संतुलित व सम्यक दृष्टिकोण रखते हुए फैसला कर सकती है.न्या. इंदु मल्होत्रा का नाम इसलिए भी चर्चा में आया कि उन्होंने सबरीमाला मामले (Sabarimala Case) पर अन्य 4 जजों से अलग फैसला दिया था. उन्होंने अपने निर्णय में कहा था कि गहन धार्मिक आस्था से जुड़े मुद्दों को धर्मनिरपेक्ष माहौल से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. संविधान का अनुच्छेद 25 में वर्णित समानता किसी भी धर्म के विश्वास और पद्धति से जुड़ी हुई है. किसी समूह की धार्मिक मान्यताओं को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं से देश के संवैधानिक और धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को क्षति पहुंच सकती है. अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने न्या. इंदु मल्होत्रा के कार्यकाल के अंतिम दिन उनका सत्कार करते हुए कहा कि न्या. मल्होत्रा मानव सेवा करते हुए सेवा निवृत्त हुईं.

    उन्होंने दृढ़ता से संवैधानिक नैतिकता पर जोर दिया. उन्होंने निर्णय दिया था कि 15 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यदि ऐसी अनुमति दी गई तो समूचे समुदाय के धार्मिक विश्वास का उल्लंघन होगा. यद्यपि अन्य 4 जजों की राय थी कि आयु के आधार पर महिलाओं को सबरीमाला जाने से रोकना गैर जरूरी धार्मिक प्रथा है. इस फैसले के बाद केरल में कानून व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो गई थी इस फैसले के खिलाफ 50 से अधिक पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गई थीं तथा इस मामले को बड़ी संवैधानिक पीठ के पास भेजना पड़ा था. न्या. इंदु मल्होत्रा के फैसले से यह बहस शुरु हो गईथी कि सरकार को धार्मिक विश्वास के मामले में किस हद तक हस्तक्षेप करना चाहिए.