किसान आंदोलन से प्रेरित अब्दुल्ला भी कश्मीर में भड़काएंगे आंदोलन

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    किसानों के लंबे समय तक चले आंदोलन के बाद केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए बाध्य हुई. इससे प्रेरित होकर नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने अपनी पार्टी के सदस्यों से कहा है कि वे भी संविधान के अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए आंदोलन की तैयारी करें. उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि, उन्हें हर गांव और मोहल्ले में जमीनी स्तर पर लोगों के संपर्क में रहना होगा. 700 किसानों के बलिदान के बाद केंद्र सरकार ने तीनों किसान कानूनों को निरस्त किया है. केंद्र द्वारा हमसे छीने गए अधिकारों को वापस पाने के लिए हमें भी इसी तरह का बलिदान देना पड़ सकता है. 

    फारूक अब्दुल्ला यह भूल रहे हैं कि केंद्र ने कृषि कानून इसलिए वापस लिए क्योंकि सामने उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव की चुनौती नजर आ रही थी. किसानों का बढ़ता असंतोष बीजेपी को यूपी में बहुत महंगा पड़ता. नौबत यहां तक आ गई थी कि सांसदों-विधायकों को उनके क्षेत्र में घुसने नहीं दिया जा रहा था. कश्मीर में ऐसी कोई स्थिति नहीं है. कृषि कानून और अनुच्छेद 370 के मुद्दे बिल्कुल अलग हैं.

    किसान आंदोलन में पंजाब, हरियाणा व पश्चिम यूपी के किसान शामिल थे जिन्होंने सीमाओं पर रास्ता रोक रखा था. अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था यह एक अस्थायी प्रावधान था जिसे कि केंद्र सरकार ने संविधान संशोधन बिल सरकार रद्द कर दिया. जम्मू, कश्मीर को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने के लिए उठाया गया यह कदम बहुत पहले से बीजेपी के एजेंडा में था. इसे मोदी सरकार किसी भी कीमत पर वापस नहीं लेगी. जम्मू-कश्मीर की स्थिति उसने अपने तरीके से नियंत्रित कर ली है. आतंकवाद से भी सख्ती से निपटा जा रहा है. अलगाववादियों को पाक से होने वाली फंडिंग रोक दी. नेको पीडीपी व हुर्रियत के नेताओं को लंबे समय तक कैद में रखा गया. अब अपनी राजनीतिक जमीन खिसकने से परेशान फारूक अब्दुल्ला बौखला गए हैं. इसलिए आंदोलन की भाला भेख रहे हैं. किसान कानून और अनुच्छेद 370 के मुद्दे और परिप्रेक्ष्य बिल्कुल भिन्न है.