पेंशनरों की बड़ी उलझन, देना पड़ता है खुद के जिंदा रहने का प्रमाण

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, सरकारी विभागों, बैंकों और बीमा कंपनियों में किसी की प्रत्यक्ष मौजूदगी मायने नहीं रखती. वहां समय-समय पर खुद के जिंदा रहने का सबूत पेश करना पड़ता है. आप सामने खड़े हैं फिर भी कहा जाएगा कि जाओ और अपने जीवित होने का प्रमाण लेकर आओ.’’ हमने कहा, ‘‘यह क्या बेवकूफी है. यह तो बुजुर्गों को बेवजह परेशान करना हुआ.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, नियम तो आखिर नियम हैं और नियमों का पालन जरूरी होता है. बिहार के छपरा जिले के धवरीटोला गांव की महिला चानो देवी जब जनधन खाते से पैसा निकालने बैंक गई तो उससे कहा गया कि आप तो मर चुकी हैं. आपको आपके खाते के पैसे कैसे दे? जब उन्होंने बैंक से पूछा कि आखिर उन्हें मृत किसने घोषित किया तो पता चला कि गांव की महिला सरपंच पूनम देवी ने उनकी मृत्यु का प्रमाणपत्र जारी किया था.’’

    हमने कहा, ‘‘गरीबों का पैसा हड़पने के लिए इस तरह की धांधली होती है. इस महिला को तंगी में पैसे की जरूरत पड़ी तो बैंक गई. वरना उसे इस तरह के गोलमाल का पता ही नहीं चलता. असली मुश्किल तो तब आती है जब कागजों में मृत घोषित किए गए व्यक्ति को अपने जिंदा रहने का सबूत जुटाने की नौबत आती है. शायद पीड़ित महिला को किसी वकील से मदद लेकर अपने जिंदा रहने का हलफनामा देना पड़ेगा.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जिन सरकारी नौकरों या शिक्षकों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन मिलती है उन्हें भी समय-समय पर अपना लाइफ सर्टिफिकेट पेश करना पड़ता है. ऐसे ही जिन लोगों की एलआईसी या किसी अन्य तरह की पेंशन सीधे बैंक खातों में जमा होती है, उनके लिए भी ऐसी ही बाध्यता है. यदि वे जिंदा होने का प्रमाणपत्र पेश नहीं करेंगे तो मृत मानकर उनकी पेंशन बंद कर दी जाएगी. आप सही-सलामत भी बैंक अधिकारियों के सामने खड़े हो जाओ तो वे मानने वाले नहीं. आप डाक्युमेंट पेश करोंगे तभी वे मानेंगे कि आप जिंदा हो.’’