जब तक राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे थे तब तक पेट्रोलियम कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल के दाम यथावत रखे लेकिन जैसे ही चुनाव नतीजे निकले, इन कंपनियों ने हर रोज भाव बढ़ाना शुरू कर दिया. सब कुछ सरकार के संकेतों पर हो रहा है. 18 दिनों तक दाम इसलिए नहीं बढ़ने दिए गए कि कहीं लोग नाराज न हो जाएं. अब फिर बेधड़क जनता को लूटा जा रहा है. पेट्रोल के दाम 100 रुपए प्रति लीटर की ओर जा रहे हैं. कोरोना के संकट में कितने ही लोगों की आय कम हो गई. बेरोजगारी बढ़ गई, फिर भी पेट्रोल, डीजल, गैस के दाम बढ़ाकर संवेदनहीनता दिखाई जा रही है. पेट्रोल-डीजल का इस्तेमाल अनाज, किराना, सब्जी, दूध लाने वाले वाहनों में होता है.
खेती में ट्रैक्टर के लिए डीजल लगता है. इनके दाम बढ़ने से महंगाई भी तेजी से बढ़ती है. महंगाई बढ़ने से मध्यम वर्ग व गरीबों की काफी फजीहत होती है. सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था कमजोर व भरोसेमंद न रहने से लोगों को टू-व्हीलर खरीदने पड़े. एक ओर ईएमआई अदा करनी है तो दूसरी ओर महंगा पेट्रोल खरीदना है. सामान्य व्यक्ति हर तरफ से पिस रहा है. महंगाई में घरेलू बजट ही फेल हो गया है. जब कच्चे तेल (क्रूड) के दाम कम थे, तब भी उसका फायदा ग्राहकों को नहीं पहुंचाया गया. पेट्रोलियम कंपनियों को प्रतिवर्ष बड़ी रकम लाभांश के रूप में केंद्र सरकार को देनी पड़ती है. केंद्र ने इस वित्त वर्ष में सभी सरकारी कंपनियों को 50,000 करोड़ रुपए लाभांश का लक्ष्य दे रखा है. इसमें 40 प्रतिशत हिस्सा तेल कंपनियों का है.
इसलिए विश्व स्तर पर तेल के दाम कितने ही गिरें लेकिन भारत में ग्राहकों को इसका फायदा नहीं मिलता. पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था कि दाम कम नहीं होंगे क्योंकि विकास के लिए धन चाहिए. पेट्रोल-डीजल पर केंद्र और राज्य सरकार भारी टैक्स वसूल करती है. कोई भी करों में रियायत नहीं देना चाहती क्योंकि इससे उनका राजस्व बढ़ता है. सभी वस्तुओं के समान पेट्रोल-डीजल को भी जीएसटी के तहत लाया जाए तो सारे देश में उसका मूल्य समान रह सकता है.