विदर्भ राज्य के मुद्दे पर BJP का झूठ सामने आया

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    किसी ने कल्पना भी न की होगी कि केंद्र सरकार इतना बड़ा झूठ बोलेगी. पृथक विदर्भ राज्य के मुद्दे पर किए गए सवाल के जवाब में तथ्यों को झुठलाते हुए केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि सरकार के पास ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं आया है. यह भी संभव है कि मंत्री को महाराष्ट्र और विदर्भ के संबंध में जानकारी ही नहीं होगी अन्यथा उन्हें पता होता कि पृथक विदर्भ राज्य की मांग बाद में बने राज्यों झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ से भी काफी पुरानी है. कुछ राज्य तो बिना किसी आंदोलन के ही बन गए, जबकि विदर्भ के लिए तो आंदोलन भी हुए. जिस बीजेपी सरकार के नित्यानंद राज्य मंत्री हैं, उसी बीजेपी ने 1998 में हुई अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पृथक विदर्भ राज्य के गठन का प्रस्ताव पारित किया था. बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में भी विदर्भ राज्य के गठन पर हामी भरी थी. लगता है मंत्री नित्यानंद राय को अपनी पार्टी के इतिहास का भी पता नहीं है.

    विदर्भ का उल्लेख महाभारत में भी है. राजा नल की पत्नी दमयंती विदर्भ की राजकुमारी थीं. श्रीकृष्ण की पटरानी रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की बेटी थीं, जिनका अमरावती के समीप स्थित कौंडिन्यपुर से हरण कर श्रीकृष्ण द्वारिका ले गए थे. पुराने सीपी एंड बरार की राजधानी नागपुर थी. 1956 तक नागपुर राजधानी रहा. इसके बाद राजधानी यहां से भोपाल चली गई. नागपुर द्विभाषी बंबई राज्य में रहा. भाषावार प्रांत रचना के तहत 1 मई 1960 को महाराष्ट्र का गठन हुआ. विदर्भ के नेता महाराष्ट्र में शामिल होने के प्रति अनिच्छुक थे लेकिन यशवंतराव चव्हाण ने विदर्भ को झुकता माप देने और विकास का लॉलीपॉप दिखाकर महाराष्ट्र में शामिल करवा लिया. उस नागपुर करार का पूरी तरह पालन नहीं हुआ. तब विदर्भ आंदोलन के नेता लोकनायक बापूजी अणे तथा विदर्भ केसरी ब्रजलाल बियाणी थे. विदर्भ के उस समय 8 जिले थे. अब इन जिलों की संख्या 11 हो गई है. विदर्भ और पश्चिम महाराष्ट्र की संस्कृति में काफी अंतर है. विदर्भ के लिए जब भी आंदोलन हुआ, उसमें फूट डालने और कुछ नेताओं को पद देकर इस मुहिम को ठंडा करने की चाल चली गई.

    हमेशा सौतेला बर्ताव किया गया

    पिछले 61 वर्षों में विकास की गंगा पश्चिम महाराष्ट्र में ही बहाई जाती रही और कृषि, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सिंचाई, बुनियादी ढांचे के निर्माण जैसे मामलों में विदर्भ के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता रहा. प. महाराष्ट्र की तुलना में विदर्भ का बैकलॉग (पिछड़ापन) कई लाख करोड़ रुपयों तक जा पहुंचा. मुंबई में बैठी सरकार को मेलघाट और गड़चिरोली जैसे अत्यंत पिछड़े क्षेत्र दिखाई ही नहीं देते.

    संसाधनों का दोहन किया बदले में कुछ नहीं दिया

    विदर्भ के बिजलीघरों में निर्मित बिजली से पश्चिम महाराष्ट्र के उद्योग चलाए जाते रहे. विदर्भ का कपास, कोयला और खनिज का भरपूर इस्तेमाल प. महाराष्ट्र ने किया लेकिन इस क्षेत्र को विकास के नाम पर अंगूठा दिखाया जाता रहा. विदर्भ की सिंचाई योजनाएं कई दशक बाद भी अधूरी रहीं, जबकि यहां के लिए निर्धारित फंड कृष्णा घाटी सिंचाई योजना के लिए हस्तांतरित कर दिया गया. विदर्भ का एक उपनिवेश के समान शोषण किया गया. विदर्भ में ही निर्मित बिजली विदर्भ को सबसे महंगी दी जाती है.

    अणे ने सरकार के बयान को असत्य बताया

    महाराष्ट्र के पूर्व महाधिवक्ता तथा विदर्भ राज्य आघाड़ी के संस्थापक श्रीहरि अणे ने केंद्र सरकार के वक्तव्य को झूठा बताते हुए कहा कि बीजेपी अपने वादे से मुकर गई है. अणे ने कहा कि बीजेपी राज्य आघाड़ी की ओर से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व गृहमंत्री को ज्ञापन सौंप कर पृथक विदर्भ गठन की मांग की गई थी. बीजेपी के पूर्व सांसद तथा वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने प्राइवेट मेंबर बिल के माध्यम से लोकसभा में पृथक विदर्भ के गठन का मुद्दा उठाया था. कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में सांसद पीए संगमा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई थी, जिसने नागपुर आकर अध्ययन करने के बाद विदर्भ राज्य गठन की सिफारिश की थी. प्रणब मुखर्जी को भी वह काम सौंपा गया था. इसलिए सरकार का यह कहना कि पृथक विदर्भ के संदर्भ में कोई प्रस्ताव नहीं है, यह कथन ही पूर्ण रूप से असत्य है. स्वयं देवेंद्र फडणवीस भी बीजेपी नगरसेवक और विधायक रहते हुए पृथक विदर्भ की मांग करते थे. बाद में वे मुख्यमंत्री बने और अभी विपक्ष के नेता हैं.