आघाड़ी के दांव से BJP पसोपेश में

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केंद्र सहित देश के विभिन्न राज्यों में हुकूमत करने वाली बीजेपी(BJP) का कोई हथकंडा महाराष्ट्र में नहीं चल पा रहा है. यह उसके शीर्ष नेताओं के लिए मन मसोसकर रह जाने जैसी बात है. कई राज्यों में कमाल दिखाने वाली बीजेपी का ‘ऑपरेशन लोटस’ (Operation lotus) हर बार महाराष्ट्र की धरती पर मुरझा जाता है और पार्टी को नाउम्मीद होना पड़ता है. वजह यह है कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने बीजेपी के लिए कामयाबी की कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी है. आघाड़ी के दांव से बीजेपी पसोपेश में पड़ जाती है. उसे सूझता नहीं कि इन तीन पार्टियों के चक्रव्यूह को कैसे तोड़े? विधान परिषद की मनोनीत की जाने वाली 12 रिक्त सीटों का चुनाव एक ऐसा मौका था जिसमें बीजेपी अपने लिए स्कोप तलाश रही थी लेकिन वहां भी उसकी दाल नहीं गल पाई. इसकी आड़ में बीजेपी सत्ता परिवर्तन के जो सपने देख रही थी, वे सपने अब धूमिल होते जा रहे हैं.

सत्ता के लिए तालमेल

महाराष्ट्र विकास आघाड़ी की तीनों पार्टियों शिवसेना, राकां व कांग्रेस ने विधान परिषद की सीटों का बराबरी में बंटवारा कर लिया. हर पार्टी ने अपने कोटे में 4 सीटें ली हैं, यद्यपि अभी इस लिस्ट में उम्मीदवारों के नाम को लेकर सस्पेंस बना हुआ है और ढेर सारे नाम सामने आए हैं, फिर भी समझा जाता है कि तीनों ही पार्टियां कुछ नए नेताओं को मौका दे सकती हैं.

पवार का उपयोगी मार्गदर्शन

राजनीति के चतुर और अनुभवी खिलाड़ी शरद पवार ने राज्य सरकार के मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हुए सभी तीनों पार्टियों को आपस में जोड़ रखा है. कुछ तो यह भी मानते हैं कि फैसलों में पवार का रिमोट कंट्रोल काम करता है. पवार ऐसी बिसात बिछाते हैं जिसका तोड़ बीजेपी के पास नहीं है. उसकी सारी कोशिशों पर पानी फिर जाता है. बीजेपी महाराष्ट्र की सत्ता में वापसी का ख्वाब देख रही है लेकिन यह तभी संभव है जब आघाड़ी टूट जाए. यह ऐसी आघाड़ी है जिसमें शिवसेना का हिंदुत्व तथा राकां-कांग्रेस की सेक्युलर सोच पूरे सहअस्तित्व के साथ मजे से चल रहे हैं. बीजेपी विधान परिषद की 12 खाली जगहों को लेकर आघाड़ी में शामिल नेताओं को तोड़ने का प्लान बना रही थी लेकिन उसकी एक नहीं चल पाई. मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में इन 12 सीटों पर मनोनीत किए जाने वाले नेताओं के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया गया. अब इस प्रस्ताव को मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाएगा.

राज्यपाल का कैसा रुख रहेगा

यदि राज्यपाल मनोनीत सदस्यों के नामों को सहज स्वीकृति न देकर अड़ंगा डालते हैं तो आघाड़ी में शामिल दलों के पास बैकअप प्लान भी है. वे बदलकर कोई दूसरा नाम भी दे सकते हैं. वैसे कैबिनेट द्वारा मंजूर नामों पर सामान्य तौर पर राज्यपाल स्वीकृति देते आए हैं. आजकल वैसे भी साहित्य, समाजसेवा, विज्ञान, कला क्षेत्र के लोगों की कम पूछ है. इन 12 सीटों पर राजनीति से जुड़े नेता ही जगह पा जाते हैं.