केंद्र को जाति जनगणना से परहेज किंतु…पाटीदारों को साथ लेने भूपेंद्र को CM बनाया

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    वोट बैंक की राजनीति क्या कुछ नहीं करती! जाति के आधार पर पार्टियां उम्मीदवारों का चयन करती हैं. किस चुनाव क्षेत्र में किस जाति के कितने वोट हैं, इसे ध्यान में रखते हुए चुनावी समीकरण बनाए जाते हैं. कहने में हर्ज नहीं है कि देश के लोकतंत्र पर जातिवाद हावी है. यद्यपि संविधान और कानून जाति और धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता और सभी को समान मानता है परंतु व्यवहार में राजनीति की धुरी जाति ही बनी हुई है.

    अगड़ी जातियां अपनी अकड़ में रहती हैं लेकिन पिछड़ी जातियां ज्यादा संगठित होती हैं आजादी के पूर्व से ही सुधारवादी नेताओं ने जाति प्रथा समाप्त करने की दिशा में आंदोलन चलाए. स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज के माध्यम से जात-पांत का भेद खत्म करने की कोशिश की. महात्मा ज्योतिबा फुले और डा. आंबेडकर ने भी इस दिशा में सार्थक प्रयास किए कि लोग जातिप्रथा की बेड़ियों को तोड़कर आगे कदम बढ़ाएं. इन सबके बावजूद चुनाव में धर्म, जाति व भाषा को तवज्यो दी जाती रही. यद्यपि यह दृष्टिकोण संकीर्ण और राष्ट्रीय एकता के लिए घातक है फिर भी राजनीतिक लाभ देखते हुए राजनीतिक दल स्वार्थ का जल डालकर जातिवाद की जहरीली बेल को पनपाते चले गए.

    नीतीश की मांग अनुसुनी की

    केंद्र सरकार को जातिगत जनगणना से परहेज है. जदयू नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीशकुमार ने पत्र भेजकर और सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल ले जाकर प्रधानमंत्री मोदी से जातिगत जनगणना कराने की मांग की लेकिन पीएम ने बात सुन ली और हां-नहीं कुछ भी नहीं कहा. बिहार की राजनीति में यादव, भूमिहार, कायस्थ, ब्राम्हण, कुर्मी की भूमिका रही है. यह तर्क दिया गया है कि जातिगत जनगणना से स्पष्ट हो सकेगा कि किस जाति के लोग पिछड़े हुए हैं और उस आधार पर उन्हें राहत देने के लिए योजना बनाई जा सकती है. इतने पर भी इस मांग के पीछे वोट बैंक वाली राजनीति काम कर रही है. जातिगत राजनीति से आरक्षण का मुद्दा जुटा हुआ है. यदि यह मंग मान ली जाती है तो मंडल आयोग के भूत को फिर से जागते देर नहीं लगेगी.

    BJP का राजनीतिक गणित

    जातिगत राजनीतिक गणित के चलते ही गुजरात में पटेल-पाटीदार समाज को साथ लेने के लिए भूपेंद्र पटेल को राज्य का नया मुख्यमंत्री बनाया ग्या. विपक्ष की चुनौती से निपटने के लिए बीजेपी ने ऐसा करना उचित समझा और विजय रुपाणी को सीएम पद से हटा दिया जो कि जैन समाज के थे. गुजरात में जैन समाज की आबादी सिर्फ 2 प्रतिशत है कांग्रेस ने भी हार्दिक पटेल को इसीलिए पार्टी में शामिल किया था क्योंकि कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने पाटीदार आंदोलन का नेतृत्व किया था. यह बात अलग है कि हार्दिक को साथ लेने पर भी कांग्रेस को कोई लाभ नहीं मिल पाया था.