अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल-डीजल के दाम कम हो चुके हैं. जब मांग और खपत कम है तो केंद्र सरकार दर घटाने की बजाय बढ़ा क्यों रही है? महंगाई बढ़ने के लिए पेट्रोल-डीजल की बढ़ती दरें काफी हद तक जिम्मेदार हैं. अनाज, किराणा, दूध, फल, सब्जी सभी ट्रक व टेम्पो से आते हैं. डीजल महंगा होने से यह सभी महंगे हो गए हैं. केंद्र सरकार यह दलील देती है कि तेल कंपनियों पर उसका नियंत्रण नहीं है जबकि यह बात विश्वसनीय नहीं लगती. जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल (क्रूड) की दर 106 से 110 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी, फिर भी देश में 70 रुपए प्रति लीटर की दर से पेट्रोल मिल रहा था.
बीच में अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की दर प्रति बैरल 25 से 30 डॉलर पर आ गई लेकिन मोदी सरकार ने उसका लाभ जनता को नहीं दिया. सरकार विकास योजनाओं के लिए लगने वाली रकम के नाम पर पेट्रोल, डीजल पर भरपूर आबकारी टैक्स वसूल करती है. जो लोग अपने काम पर 15-20 किलोमीटर से आना-जाना करते हैं, पेट्रोल महंगा होने से उनका बुरा हाल हो गया है. गरीब और मध्यम वर्ग महंगाई की मार से कराह रहा है लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं है.
रसोई गैस भी बहुत महंगी हो गई है. कोरोना संकट में लोग बेरोजगार हुए हैं. कितने ही लोगों का वेतन कम कर दिया गया है. लोग बैंक में जमा बचत की रकम निकालकर जैसे-तैसे घर चलाने को मजबूर हैं. लॉकडाउन की बंदिशों से दूकानदारों, व्यापारियों का धंधा चौपट हो गया है. किसी की कहीं सुनवाई नहीं है. सरकार की उदासीनता से जनता दुखी है.