विवादास्पद निर्णयों पर लगातार हंगामे, क्या सरकार खुद नहीं चलने देना चाहती संसद

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    संसदीय लोकतंत्र की सफलता सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आपसी संवाद व सदन में होने वाली स्वस्थ बहस पर निर्भर है. आबादी के लिहाज से विश्व में सबसे बड़े हमारे लोकतंत्र में समन्वय का स्थान गतिरोध ने ले लिया है. सहनशीलता की बजाय असहिष्णुता हावी हो गई है. यह स्थिति सचमुच चिंताजनक है. सरकार के विवादास्पद निर्णयों को लेकर लगातार हंगामा हो रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार खुद नहीं चाहती कि संसद की कार्यवाही चले? वैसे भी सरकार ने कृषि कानून वापसी संबंधी इस सत्र का पहला कानून बिना किसी चर्चा के सिर्फ 4 मिनट में पास कर दिया. शायद उसकी निगाह में विपक्ष गैर जरूरी है. सरकार यह भूल जाती है कि मतदाताओं ने सिर्फ उसे ही नहीं, बल्कि विपक्ष को भी निर्वाचित किया है. 12 राज्यसभा सांसदों के समूचे सत्र के लिए निलंबन से सरकार और विपक्ष का टकराव और भी तीव्र हो गया है. इससे पूरा शीत सत्र बर्बाद होने के आसार नजर आते हैं. 

    पिछले मानसून सत्र में असंसदीय व्यवहार करने के तथाकथित आरोप में इन सांसदों पर इस सत्र में निलंबन की कार्रवाई की गई. क्या यह अटपटी बात नहीं है? पहली बार राज्यसभा के नियम 256 का इस्तेमाल कर यह सख्त कदम उठाया गया. इन सदस्यों को अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं दिया गया. विपक्ष ने आरोप लगाया है कि जानबूझकर लोकतांत्रिक विपक्ष को नीचा दिखाने का काम किया गया. अगर निलंबन का फैसला किया जाना था तो यह पिछले सत्र में ही होना चाहिए था. राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने कहा कि सांसद अपने किए पर पश्चाताप करने की बजाय उसे न्यायोचित ठहराने पर तुले हैं. ऐसे में उनका निलंबन वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि सांसद किस बात की माफी मांगें? विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि निलंबन नियम विरोधी है. सरकार संख्याबल का दुरुपयोग कर रही है. निलंबन उसी दिन लागू हो सकता था जिस दिन हंगामा हुआ था, अब यह लागू नहीं होता. नियम 258 के तहत सदस्य कोई भी सवाल या मुद्दा सदन में उठा सकते हैं.

    विपक्ष को उत्तेजित किया

    कृषि कानून वापसी का विधेयक पास करने के बाद सरकार ने शेष सत्र के लिए 12 सदस्यों को निलंबित करने का प्रस्ताव पेश किया. यह दिखाता है कि सरकार विपक्ष को जानबूझकर उत्तेजित करना चाहती थी. एक दूसरे पर दोषारोपण की बात छोड़ भी दें तो संसद चर्चा और बहस के लिए बनी है और सरकार व विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है कि वे इसके लिए अनुकूल माहौल बनाएं. बहस ही लोकतंत्र की प्राणवायु है. सरकार दिल बड़ा रखकर विपक्ष को उसकी नीतियों व कार्यकलापों की आलोचना करने तथा विरोध जताने का मौका दे. विपक्ष को झुकाने की बजाय उसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल करने के प्रयास किए जाएं. सांसदों का निलंबन वापस लेकर ऐसी रचनात्मक शुरुआत की जा सकती है. विपक्ष के वरिष्ठ नेताओं को संसद में अपनी बात रखने का पर्याप्त अवसर दे. उन्हें दबाकर या झुकाकर रखना अलोकतांत्रिक होगा. ये 12 सांसद भी अपने क्षेत्रों और जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं. पिछले सत्र के आचरण की सजा इस सत्र में देना व्यावहारिक नहीं लगता.