नेताओं को सत्ता अफसरों को भत्ता

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    लोकतंत्र की पहचान यह है कि नेताओं को किसी भी कीमत पर सत्ता चाहिए और सरकारी अफसरों-बाबुओं को भत्ता चाहिए. रही बात जनता की, तो वह गरीब की गाय है. उसकी सहनशीलता लाजवाब है. देश के आम नागरिक मुंह सिलकर महंगाई बर्दाश्त करते हैं. पेट्रोल-डीजल कितना ही महंगा हो, जीवनावश्यक वस्तुओं के दाम पोल वाल्ट की छलांग लगाएं, लोग बर्दाश्त करते चले जाते हैं क्योंकि कोई विकल्प नहीं है. 60 साल से भी पहले फिल्म मदर इंडिया का मजबूरी भरा गीत लोगों ने सुना था- दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा.

    इतने वर्ष बाद भी हमारे भारत महान के लोग महंगाई, बेरोजगारी और अभाव का विषपान करने को विवश हैं. दूसरी ओर सरकार को जनता के दुख-दर्द की बजाय अपने कर्मचारियों की फिक्र है. केंद्रीय कर्मियों का महंगाई भत्ता 17 प्रतिशत से बढ़ाकर 28 प्रतिशत कर दिया गया जो 1 जुलाई से लागू माना जाएगा. जब केंद्रीय कर्मचारियों का भत्ता बढ़ा तो राज्य सरकारों के कर्मचारी भी क्यों पीछे रहने वाले! उनकी हथेली पर भी बढ़े हुए महंगाई भत्ते का प्रसाद रखा जाएगा. नेता अगर जुमला सुनाते हैं तो सरकारी अमला भी अपने ढर्रे पर चलता है. जनता जनार्दन की याद तो सिर्फ इलेक्शन के समय आती है. पावर में आने के बाद पब्लिक या उसकी समस्याओं से नेताओं का कोई सरोकार नहीं रह जाता.