Debt waiver also follows the RBI directive

आरटीआई कार्यकर्ता साकेत गोखले के आवेदन पर भारतीय रिजर्व बैंक ने स्वीकार किया कि उसने 50 शीर्ष विलफुल डिफाल्टर्स (जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले) के 68,607 करोड़ रुपए के कर्ज माफ कर दिए हैं।

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आरटीआई कार्यकर्ता साकेत गोखले के आवेदन पर भारतीय रिजर्व बैंक ने स्वीकार किया कि उसने 50 शीर्ष विलफुल डिफाल्टर्स (जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले) के 68,607 करोड़ रुपए के कर्ज माफ कर दिए हैं। इनमें फरार हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी का नाम भी शामिल है जो कि इस समय एंटीगुआ का नागरिक बन गया है। उसका भांजा हीरा कारोबारी नीरव मोदी लंदन में है। अन्य बड़े बकायादारों में जतिन मेहता, कुदोस केमी, बाबा रामदेव की रुचि सोय कंपनी, जूम डेवलपर्स प्रा। लि। , हरीश मेहता और विजय माल्या हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने देश के 50 बड़े पूंजीपतियों के 68,000 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज बट्टे खाते में डाले जाने को लेकर मोदी सरकार को निशाने पर लिया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा- ‘मैंने संसद में प्रश्न पूछा था कि देश के 50 सबसे बड़े बैंक चोरों के नाम बताइए। तब वित्त मंत्री ने जवाब नहीं दिया था। अब आरबीआई ने नीरव मोदी, मेहुल चोकसी सहित भाजपा के मित्रों के नाम बैंक चोरों की लिस्ट में डाले हैं। इसीलिए संसद में इस सच को छुपाया गया। ’ ऐसा माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक सरकार के निर्देशों पर चलता है और कर्जमाफी भी ऊपरी इशारे पर हुई है। दूसरी ओर स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि ये कर्ज बट्टे खाते में डाल दिए गए हैं, माफ नहीं किए गए। बैंक अपनी बैलेंस शीट से बुरे कर्ज (बैड लोन) हटाने और करदेयता (टैक्स लायबिलिटी) कम करने के लिए राइटऑफ करते हैं। इसका यह मतलब नहीं कि मेहुल चोकसी या विजय माल्या को खुला छोड़ दिया जाएगा। इसका आशय है कि बैंक ने इस कर्ज के एवज में 100 प्रतिशत प्रॉविजनिंग कर उतनी रकम अलग रखी है। ऐसा इसलिए किया गया कि चाहे कर्ज का एक पैसा भी वापस न मिले लेकिन डिपाजिटर्स के हित सुरक्षित रहेंगे। बैंक ने जो कर्ज की रकम राइटऑफ की है, वह उसके ग्रॉस और नेट परफार्मिंग एसेट में नहीं गिनी जाएगी। बैंक इन कर्जदारों को न तो माफ करेंगे, न कोई छूट देंगे। उनसे कर्ज वसूली की प्रक्रिया भी नहीं रोकी जाएगी। बैंक अपना कर्ज हिस्सों में वसूल कर सकते हैं। बैंक ‘राइटबैक’ की प्रक्रिया अपना सकता है। हाल ही में एस्सार स्टील समझौते में एसबीआई ने राइटबैक किया था। इसके पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक तथा कमर्शियल बैंकों को निर्देश दिया था कि जो भी आरबीआई से जानकारी लेना चाहें, उन्हें डिफाल्टर्स के नाम बताए जाएं। पारदर्शिता का तकाजा है कि बैंक यह बताएं कि बैंक लोन का राइटऑफ क्या होता है? सरकार को इन बैंकों को पुन: पूंजी देनी पड़ती है और इसका बोझ करदाताओं पर आता है। सरकार को भी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।