दिग्विजय की राहुल को सटीक सलाह

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व्यापक भ्रमण और सीधा जनसंपर्क ही किसी नेता को लोकप्रिय और कद्दावर बनाता है. ड्राइंगरूम पॉलिटिक्स करने वाले नेता एक सीमा से आगे नहीं बढ़ पाते. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को उचित परामर्श दिया है कि उन्हें संसद में और ज्यादा सक्रिय होने के अलावा लोगों से ज्यादा संवाद बनाए रखना चाहिए. वे जनता से और ज्यादा घुलें-मिलें. दिग्विजय सिंह ने कहा कि राहुल को भारत भ्रमण पर जाना चाहिए. संपर्क बढ़ाने का बेहतर जरिया यात्रा करना है. जन-जन के हृदय में स्थान बनाने के लिए ऐसा करना आवश्यक है. इसके साथ ही जनता की दिक्कतें, आशा-आकांक्षा से भी अवगत होने का मौका मिलता है. सुविधा और आराम की राजनीति करने वाले नेता आम तौर पर जनता से कट जाते हैं.

कार्यकर्ता को फर्क नहीं मालूम यात्रा और पदयात्रा में

तमिलनाडु कांग्रेस के युवा नेता तथा लोकसभा में पार्टी के व्हिप मनिकम टैगोर ठीक से समझ नहीं पाए कि दिग्विजय सिंह का आशय क्या है? टैगोर ने कहा कि राहुल गांधी करीब 100 पदयात्राएं पहले ही कर चुके हैं. पार्टी में ऊंचे पदों पर बैठे लोग वास्तव में उनके साथ खड़े रहें और पीठ पीछे उनकी आलोचना न करें. मनिकम टैगोर को समझना चाहिए कि पदयात्रा और यात्रा में फर्क होता है. राहुल यदि देशव्यापी भ्रमण करेंगे तो ट्रेन, कार, विमान आदि का इस्तेमाल भी करेंगे, तभी तो वे विभिन्न राज्यों व शहरों में जा सकेंगे.

महात्मा गांधी ने भी देश भर का प्रवास किया था

जब महात्मा गांधी बैरिस्टर बनने के बाद दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे तो उनके राजनीतिक गुरु व कांग्रेस के नरम दल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले ने उनको यही सलाह दी थी कि राजनीति व समाजसेवा करना है तो पहले देश की आत्मा को समझना होगा. उन्होंने गांधी से कहा था कि वे एक वर्ष तक भारत भ्रमण करें और देशवासियों के जीवन, रहन-सहन, उनकी दिक्कतों को निकट से देखें और समझें. इसके बाद वे राजनीति में कदम बढ़ाने की सोचें. महात्मा गांधी ने यही किया. तब उन्हें देश में व्याप्त गरीबी, अशिक्षा, शोषण आदि प्रत्यक्ष देखने को मिला. ओडिशा में एक जगह उन्हें पता चला कि एक महिला व उनकी बेटी के पास एक ही साड़ी है. इससे उन्हें इतनी वेदना हुई कि गांधी ने अपनी काठियावाड़ी पगड़ी तथा अन्य वस्त्र पहनना छोड़ दिया और आजीवन केवल एक छोटी सी धोती पहनकर रहे. यह उस यात्रा का ही प्रभाव था कि महात्मा गांधी ने देशवासियों की यथार्थ स्थिति को प्रत्यक्ष रूप से देखा-समझा. यदि गांधी देश का भ्रमण न कर मुंबई या गुजरात में रहकर वकालत करते रह जाते तो उनका क्षेत्र सीमित रह जाता और वे ‘महात्मा’ नहीं बन पाते.

दिग्विजय सिंह की राहुल को सलाह इसलिए सटीक है क्योंकि भारत भ्रमण से जनता के बीच उनका आधार मजबूत होगा. उनको कोई गुमराह नहीं कर पाएगा. वे लोगों की आशा-आकांक्षा व जनमानस को प्रत्यक्ष रूप से बेहतर समझ पाएंगे. एक बार जनता से निकटता बढ़ाई तो राजनीति की राह सुगम हो जाती है. लोगों के करीब जाना बहुत महत्व रखता है. 1977 में इंदिरा गांधी सत्ता से बाहर हो चुकी थीं. ऐसा लगता था कि अब वे पुन: कभी पावर में नहीं आएंगी लेकिन इंदिरा ने हिम्मत नहीं हारी और न निष्क्रियता दिखाई. बेलछी गांव में दलितों पर जघन्य अत्याचार की खबर मिलते ही वे उस दुर्गम सुदूर गांव में पहुंचीं जहां केवल हाथी पर बैठकर जाना संभव था. उन्होंने पीड़ितों को हिम्मत बंधाई.

इसके बाद उन्होंने आचार्य विनोबा भावे से पवनार आकर भेंट की और विदर्भ का व्यापक दौरा किया. इससे पुन: उनकी लोकप्रियता बढ़ी और 1980 में पुन: सत्ता में आईं. जनता से मिलन-जुलना, उसका आशीर्वाद लेना नेतृत्व में नई जान डाल देता है. दिग्विजय की सलाह सामयिक है. उन्होंने यह परामर्श ऐसे समय दिया जब कांग्रेस में युवा और बुजुर्गों के बीच टकराव चल रहा है. ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ चुके हैं तथा सचिन पायलट ने भी खुली बगावत कर दी है. कांग्रेस चौराहे पर आ गई है जहां सही रास्ता तलाशना जरूरी है. ऐसे में राहुल गांधी को अविलंब सक्रियता दिखाना और चुनौतियों से सीधे मुकाबला करना जरूरी है. उन्हें यह भी समझना होगा कि राजनीति पार्ट-टाइम बिजनेस नहीं है. संसद सत्र के समय विदेश चले जाना या विपश्यना करने जाना जैसी बातों से बचकर वे पूर्णकालिक राजनेता के रूप में जिम्मेदारी संभालें, यही कांग्रेसजनों की इच्छा है.