डबल एंजिन/सिंगल एंजिन सरकारें, PM कैसे कर सकते हैं भेदभाव

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    संकीर्णता और स्वार्थ की राजनीति राष्ट्रहित को बुरी तरह नुकसान पहुंचाती है. विगत 7 वर्षों में यही तंग नजरिया पनपता देखा जा रहा है. बीजेपी को 2014 के लोकसभा चुनाव में सफलता क्या मिली, तभी से उसके नेताओं ने डबल एंजिन की सरकारों की महत्ता बतानी शुरू कर दी. उसका आशय यह था कि यदि केंद्र के साथ राज्यों में भी बीजेपी की सरकारें होगी तो वहां विकास पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा. ऐसी भेदभाव की नीति संविधान की मंशा के खिलाफ है जो कि समान रूप में देश के हर राज्य की तरक्की के पक्ष में है.

    बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने तो कांग्रेस मुक्त भारत की भी बात कही थी. वे चाहते हैं कि विपक्ष का अस्तित्व ही मिट जाए. इस तरह की सोच संसदीय लोकतंत्र की अवधारणा के खिलाफ है जिसमें सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष की मौजूदगी भी जरूरी मानी गई. जिन देशों में विपक्ष नहीं है वहां तानाशाही है. पता नहीं बीजेपी नेताओं में ऐसी असंहिष्णुता व नफरत की भावना क्यों है? सिंगल एंजिन की सरकार से उनका तात्पर्य राज्यों की कांग्रेस या क्षेत्रीय पार्टीयों की ऐसी सरकारों से है जिनमें बीजेपी ना हो. ऐसी सरकारें बीजेपी नेतृत्व को सख्त नापसंद है क्योंकि बीजेपी सर्वत्र अपनी एकछत्र हुकूमत चाहती है. विपक्षी दल उसे आंख की किरकिरी लगते हैं.

    चुनाव प्रचार में यही रवैया अपनाया

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान खुलकर यही रवैया या ‘एंगल’ अपनाया. वे अपने भाषनों में डबल एंजिन सरकारों का जिक्र कर विकास का दृष्टिकोण समझाते थे और कहते थे कि केंद्र के समान ही राज्य में भी बीजेपी की सरकार हो तो विकास तेजी से होगा. यह एक प्रकार का प्रलोभन था कि यदि राज्य में बीजेपी को जिताओंगे तो केंद्र से विकास में भरपूर मदद मिलेगी अन्यथा नहीं. इस तरह का ओछा चुनावी प्रचार कांग्रेस ने कभी केंद्र की सत्ता में रहते हुए नहीं किया.

    संकीर्ण भावना से ऊपर उठें

    प्रधानमंत्री मोदी को दलीय व क्षेत्रीय भावना से ऊपर उठकर सदैव राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को महत्व देना चाहिए. किसी राज्य में चुनाव प्रचार के लिए बार-बार जाकर रैलियां करना उनके पद की गरिमा के अनुकूल नहीं है. बंगाल विधानसभा के चुनाव में उन्होंने यही किया. उस दौरान टीएमसी प्रमुख व बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से वे सीधे टक्कर लेते दिखाई दिए. उन्होंने जिस टोन में ममता को ललकारा उससे भी ज्यादा तीखा जवाब ममता ने दिया. क्या पीएम को अपना राष्ट्रीय स्तर छोड़कर राज्यों के चुनाव में प्रत्यक्ष दखलंदाजी करनी चाहिए. क्या उन्हें अपनी पार्टी के राज्यतरीय नेताओं पर विश्वास नहीं है? मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब की बात अलग थी. प्रधानमंत्री बनने के बाद वे डबल एंजिन व सिंगल एंजिन सरकारें कहकार राज्यों में भेदभाव कैसे कर सकते हैं? उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि वे समूचे देश के पीएम हैं और उनकी निगाह में सभी राज्य बराबर होने चाहिए फिर वह बीजेपी या एनडीए शासित हो या विपक्ष शासित! देशवासी उनसे व्यापक और उदार चिंतन की उम्मीद रखते हैं.