9 माह में 2,000 ने जान दी, किसान आत्महत्या एक ज्वलंत समस्या

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    महाराष्ट्र में 9 महीनों में 2,000 से भी अधिक किसानों ने आत्महत्या की जिनमें सर्वाधिक संख्या विदर्भ के किसानों की है. पिछले कुछ वर्षों में मराठवाड़ा, पश्चिम व उत्तर महाराष्ट्र में भी किसान आत्महत्या का आंकड़ा बढ़ा है. महाराष्ट्र में प्रतिदिन 7 से 8 किसान खुदकुशी करते हैं इतनी गंभीर स्थिति होने पर भी न जाने क्यों इस ज्वलंत मुद्दे पर विधानमंडल के नागपुर सत्र में चर्चा नहीं हो रही है. यह कैसी उदासीनता है? राजनीति में व्यस्त नेता क्या मानवीय संवेदना खो चुके हैं? अन्नदाता किसानों की ऐसी दुर्दशा को लेकर सरकार, प्रशासन और एनजीओ क्या कर रहे हैं? 

    खासतौर पर विदर्भ में किसानों की खुदकुशी की वजह है- लगातार फसल बरबाद होना, सूखा या गीला अकाल, कर्ज का भारी बोझ, साहूकारों द्वारा सताना, सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए कर्ज लेकर किए जानेवाले विवाह और फिर रकम अदा नहीं कर पाना, खाद और बीज में मिलावट से की जानेवाली धोखाधड़ी, बाजार में अचानक गिरनेवाले भाव, बीमा कंपनियों और अधिकारियों की मिलीभगत से किया जानेवाला छल. राज्य सरकार विभिन्न योजनाओं, अनुदान मंजूरी, कृषि उपज खरीदी और कर्जमाफी की कोरी घोषणाएं करती है. 

    बार-बार कहा जाता है कि किसानों के खाते में पैसे सीधे जमा किए जा रहे हैं लेकिन यदि ऐसी बात सच होती तो किसान फांसी लगाकर या जहर पीकर जान क्यों देते. प्रश्न यह नहीं है कि सरकार किस पार्टी की है. विधान मंडल के सारा कामकाज अलग रखकर केवल किसान आत्महत्या के मुद्दे पर गंभीर चर्चा करना और इसका समाधान निकालना चाहिए. महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य में इतनी बड़ी तादाद में किसानों की खुदकुशी होना एक बड़ा कलंक है. सरकार अपने कर्मचारियों को समय पर मोटी तनख्वाह देती है. 

    शहर में संपन्न वर्ग भी हर तरीके से दौलत कमा लेता है लेकिन हर मौसम में दिन रात कड़ी मेहनत करनेवाला किसान कहां जाए? उसकी खेती कैसे लाभप्रद बनाई जाए, इसका उपाय खोजा जाना चाहिए. गत 5 वर्षों में नकद फसल या कैश क्रॉप लेनेवाले किसानों की तादाद दोगुनी होने की बात कही गई. यदि ऐसा है तो फिर किसान क्यों अपनी जान दे रहे हैं? क्या गन्ना उत्पादक किसानों को समय पर रकम का भुगतान हो रहा है? यदि उत्पादन बढ़ा है तो उपज के भाव भी सही मिलने चाहिए. सब्जी की पैदावार करनेवाले किसान की लागत ही नहीं निकल पा रही है. कमाई सिर्फ दलालों की होती है इन सभी पहलुओं पर ध्यान देकर संकट का हल खोजा जाए तो उपयुक्त रहेगा.