2024 पर निगाह, विपक्ष का सर्वमान्य नेता कौन होगा?

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    सत्ता पाने की छटपटाहट को लेकर विपक्षी पार्टियां बेमेल गठबंधन बनाने की फिराक में हैं. उनका एकमात्र लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मजबूती से डटी एनडीए सरकार को 2024 के चुनाव में सत्ता से बाहर करना है. वास्तव में एनडीए भी पहले जैसा नहीं रह गया. उसमें से शिवसेना और अकाली दल पहले ही बाहर निकल चुके हैं. वहा सिर्फ बीजेपी का वर्चस्व है. पहले 2014 और फिर 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के साथ ही मोदी सरकार ने खुद को मजबूती से स्थापित कर रखा है. विपक्ष के पास ऐसा कोई नेता भी नहीं है जो अखिल भारतीय स्तर पर मोदी के प्रभावशाली नेतृत्व को चुनौती दे सके.

    इसके बावजूद कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना, टीएमसी, डीएमके, लेफ्ट, राजद व झामुमो सहित 19 विपक्षी पार्टियों ने 2014 तक मजबूत विकल्प बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार भी मान चुके हैं कि कांग्रेस को साथ लिए बगैर विपक्षी एकता मजबूत नहीं बन पाएगी क्योंकि देश में बीजेपी के बाद कांग्रेस ही दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है.

    अब यह सवाल भी उठता है कि क्या कांग्रेस किसी अन्य विपक्षी पार्टी के नेता को खुले मन से आगे आने देगी? ऐसा हुआ तो फिर राहुल का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? क्या विपक्षी व क्षेत्रीय पार्टियों में अपनी व्यापक स्वीकार्यता की वजह से शरद पवार 80 वर्ष की उम्र में विपक्ष का नेतृत्व करना चाहेंगे? क्या टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी गैरबीजेपी विपक्ष का सर्वमान्य चेहरा बन सकती हैं? बंगाल में बीजेपी को धूल चटाने की वजह से ममता का कद निश्चित तौर पर बढ़ गया है लेकिन अन्य राज्यों में लोग उन्हें क्यों स्वीकारेंगे? हिंदी में जिस प्रकार मोदी भाषण देते हैं वैसा नेता विपक्ष को चाहिए.

    देवगौडा इसलिए विफल रहे क्योंकि देश की संपर्क भाषा हिंदी उन्हें नहीं आती थी. विपक्ष तो यही चाहेगा कि पहले एकजुट होकर बीजेपी को हरा दिया जाए फिर नेतृत्व का फैसला होता रहेगा लेकिन जनता तो यही चाहेगी कि विपक्ष पहले अपने नेता का चेहरा बताए.