OBC अध्यादेश लौटाने के पीछे मामला न्यायप्रविष्ट होने की दलील

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    हमेशा यह मान लेना सही नहीं होगा कि राज्यपाल कोश्यारी राज्य सरकार के हर काम में रोड़ा अटकाते हैं और ऐसा करने के लिए उन्हें बीजेपी इशारा करती है या केंद्र का इस बारे में निर्देश रहता है. संविधान ने जिस प्रकार की व्यवस्था कर रखी है, उस दायरे से राज्यपाल बाहर तो नहीं जा सकते. वे सरकार के किसी ऐसे कदम को मंजूरी कैसे देंगे जो आगे चलकर गले की हड्डी बन जाए. 

    ओबीसी आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. ऐसे न्यायप्रविष्ट मुद्दे का निपटारा होने तक धैर्य रखना जरूरी है. इसलिए राज्यपाल ने ओबीसी आरक्षण को बचाने के लिहाज से महाविकास आघाड़ी सरकार द्वारा भेजे गए अध्यादेश को लौटा दिया और उस बारे में कानूनी स्पष्टीकरण मांगा है. जब तक सरकार विधेयक पारित कर कानून नहीं बनाती, तब तक अध्यादेश एक तात्कालिक व्यवस्था है जिसकी अवधि 6 माह रहती है. 

    कोई भी सरकार सामान्य तौर पर अध्यादेश जारी करती है और उसके बाद उपलब्ध समय में उस संबंध में कानून बनाने की तैयारी में जुट जाती है. विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस की प्रतिक्रिया है कि ओबीसी आरक्षण को बचाने के लिए महाराष्ट्र सरकार को ऐसा अध्यादेश लाना चाहिए जो टिक सके. इस बारे में राज्यपाल ने जो सवाल उठाए हैं, राज्य सरकार को उसका जवाब देना चाहिए. 

    शिवसेना प्रवक्ता संजय राऊत की दलील है कि यदि राज्यपाल कानूनी सलाह चाहते हैं तो हमारे पास कानूनी सलाहकारों की टीम है. राज्य सरकार ने मराठा आरक्षण और ओबीसी आरक्षण के बारे में सलाह लेने के बाद ही यह अध्यादेश जारी किया है. राज्यपाल की कार्यशैली के आलोचकों का कहना है कि राज्यपाल के फैसले के पीछे बीजेपी का हाथ है. 

    राहत व पुनर्वास मंत्री विजय वडेट्टीवार ने आरोप लगाया कि ओबीसी को गड्ढे में डालने की साजिश के तहत अध्यादेश को लटकाने का काम किया जा रहा है. बीजेपी की भूमिका आरक्षण को खत्म करने की है. अगर ओबीसी कल सड़कों पर उतरे तो इसके लिए बीजेपी जिम्मेदार होगी.