किसानों से लगातार छल बीमा कंपनियों की विचित्र कारगुजारी

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    फसल बीमा योजना ढोल में पोल साबित हुई है जिसका लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है. इसके लिए जबाबदार हैं निजी बीमा कंपनियां जो सिर्फ मुनाफा कमाना और गरीबों को चूसना जानती हैं. सरकार की अच्छी योजनाओं में इन कंपनियों का सहयोग न देना आश्चर्यजनक और निंदनीय है. यह सचमुच दुख की बात है कि किसानों को लाभ पहुंचाने और आय बढ़ाने संबंधी योजनाएं जमीन तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती हैं.

    प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) की धूमधाम से शुरुआत हुई. इसका उद्देश्य प्राकृतिक आपदा से फसलों को होनेवाले नुकसान की भरपाई सुनिश्चित करना था लेकिन अतिवृष्टि, सूखा या रोगों से खराब हुई फसलों के लिए विगत 3 वर्षों में किसानों के बीमा दावे धड़ाधड़ ठुकराए गए. इन दावों को ठुकराने में 9 गुना इजाफा हुआ है. इसमें से भी 75 फीसदी दावे निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों ने रद्द किए हैं. यह आंकड़े चौंकानेवाले हैं. देशभर के 1.02 करोड़ किसानों ने फसल बीमा के दावे किए थे. इनमें से 22.56 लाख दावे निजी बीमा कंपनियों से किए गए थे. 3 वर्ष में 13 लाख फसल बीमा दावे रद्द कर दिए गए. इन दावों में से 9.87 लाख खारिज कर दिए गए. इससे इन कंपनियों की बेरुखी और निष्ठुरता दिखाई देती है. बीमा कंपनियां प्रीमियम तो अधिक लेती हैं लेकिन नुकसान होने पर किसानों को मुआवजा नहीं देती.

    खासतौर पर सीमित व स्थानीय स्तर पर प्राकृतिक आपदा से होनेवाले नुकसान की भरपाई के लिए किए जानेवाले दावे ठुकरा दिए जाते हैं. सरकारी बीमा कंपनियों का रवैया कुछ बेहतर है. इनके पास 54.53 लाख दावे किए गए थे जिनमें से 3.6 लाख खारिज हो गए. इसके विपरीत निजी बीमा कंपनियों ने 22.56 लाख दावों में से 9.87 लाख को खारिज कर दिया. फसल बीमा योजना में 5 सरकारी, 12 निजी कंपनियां व एक संयुक्त उपक्रम का समावेश है.