बड़ी व सार्थक योजना जलयुक्त शिवार पर व्यर्थ का बवाल

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    मुंबई: महाराष्ट्र में भूजल का स्तर बढ़ाने और सिंचाई सुविधा में वृद्धि के दूरगामी उद्देश्य से पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जलयुक्त शिवार योजना चलाई थी. यह एक बड़ी और सार्थक योजना थी और सिंचाई साधनों के विकास की दृष्टि से इसका अत्यंत महत्व था.

    राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद इस परियोजना को बड़े पैमाने पर गड़बड़ी का आरोप लगाया गया जिस पर उद्धव ठाकरे सरकार ने इसकी खुली जांच कराने का निर्णय लिया. फडणवीस ने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को लेकर कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि 4 जिलों में जलयुक्त शिखर योजना फेल साबित हुई. इस परियोजना पर 9,000 करोड़ रुपए खर्च किए गए लेकिन फिर भी अपेक्षित भूजल स्तर में वृद्धि नहीं हुई.

    कैग की इस रिपोर्ट के आधार पर महाविकास आघाड़ी खरफार ने योजना की जांच करवाने का निर्णय लिया और इस उद्देश्य से जांच कमेटी गठित की गई. पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने माना कि जलयुक्त शिवार योजना में 600 अलग-अलग शिकायतें थीं. यदि कहीं कोई गलती है तो उसकी जांच होनी ही चाहिए. इसमें कोई आपत्ति नहीं है परंतु 6,00,000 कामों के लिए सिर्फ 600 की जांच की गई.

    यह नहीं हुआ होता तो अच्छा था. 600 कामों के लिए समूची योजना को पूरी तरह गलत करार देना ठीक नहीं है. यद्यपि खबर आई थी कि जांच के बाद मृदा और जल संधारण विभाग के जलयुक्त शिवार को क्लीन चिट दे दी है लेकिन इस संबंध में आघाडी सरकार ने स्पष्टीकरण दिया है कि कोई क्लीन चिट नहीं दी गई है और अभी तक जिलाधिकारियों की ओर से इस परियोजना को लेकर रिपोर्ट ही नहीं आई है.

    बीजेपी विधायक सुधीर मुनगंटीवार लोकलेखा समिति के अध्यक्ष हैं. मृदा व जल संधारण विभाग के अपर मुख्य सचिव को लोकलेखा समिति के समक्ष साक्ष्य पेश करनी थी. कैग की टिप्पणी पर सचिव ने अपनी बात कही. इससे संबंधित आंकड़ा योजना की क्रियान्वयन करने वाली एजेंसी ने खुद ही दिया. इतना कोई भी समझ सकता है कि प्रयासों के बावजूद हर योजना पूरी तरह कामयाब नहीं होती. कुछ न कुछ न्यूनता रह जाती है.