कर्नाटक में भ्रष्टाचार, कमीशनखोर है राज्य की BJP सरकार

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    चाल, चेहरा और चरित्र की दुहाई देनेवाली बीजेपी खुद को दूसरों से अलग (पार्टी विद डिफरेंस) बताती है लेकिन उसका आडंबर कभी न कभी खुलकर सामने आ ही जाता है. कर्नाटक में लिंगायत समाज के धर्मगुरु डिंगलेश्वर स्वामी ने प्रदेश की बीजेपी सरकार पर आरोप लगाया कि मठों को मिलनेवाला अनुदान सरकार 30 प्रतिशत कमीशन लेने के बाद ही मंजूर करती है. पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा भी इसी लिंगायत समाज के हैं. क्या वे इस धांधली की पुष्टि करेंगे? 

    ऐसा ही भ्रष्टाचार ठेके देने में भी किया जाता है. उडुपी के एक ठेकेदार ने मंत्री केएस ईश्वरप्पा पर प्रताड़ित करने व बिल पास करने में कमीशनखोरी का आरोप लगाकर आत्महत्या कर ली थी. इस तरह बगैर कमीशन वसूले कोई काम ही नहीं होता. राष्ट्रभक्ति, जनसेवा और ऊंचे आदर्शों की बात करने वाली पार्टी की सरकार व मंत्री जब कमीशन वसूल करते हैं तो उनकी करनी और कथनी का अंतर स्पष्ट हो जाता है. यदि किसी प्रोजेक्ट के लिए कांट्रैक्टर से 40 फीसदी कट मनी मांगा जाता है तो सोचा जा सकता है कि वह कांट्रैक्टर कितने हल्के दर्जे का काम करेगा! 

    ऐसी कमीशनखोरी की वजह से ही घटिया दर्जे का निर्माण होता है जिससे पुल टूटते हैं और सड़कों में दरारें आती हैं या गड्ढे हो जाते हैं. विकास कार्यों में भ्रष्टाचार का कलंक जुड़ा हुआ है. क्या नेक नीयत रखने वाले ईमानदार व जनसेवी नेता कहीं खो गए हैं? उनके खाने के दांत अलग और दिखाने के अलग हैं. सरकार के कार्यकलापों में ईमानदारी होनी चाहिए. यदि नेता और मंत्री अपनी जेब भरते रहेंगे तो पार्टी की छवि का क्या होगा? अन्य पार्टियों का भ्रष्टाचार गिनाने से पहले बीजेपी आत्मावलोकन करे कि कर्नाटक में उसकी सरकार और मंत्री क्या कर रहे हैं. किसी पार्टी की साख वर्षों की कड़ी मेहनत से बन पाती है लेकिन कुछ नेताओं के लालच व गलत आचरण से बदनाम होते देर नहीं लगती.