CJI चंद्रचूड़ की सीख जिला जजों को छोटा न समझें, सम्मान दें

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    स्वाधीनता के बाद के 75 वर्षों में किसी भी सीजेआई ने जिस बात पर गौर नहीं किया, उसे अब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अत्यंत गंभीरता से लिया है. न्यायपालिका के प्रमुख ने अपने ही घर में झांक कर देखा है कि किस तरह आज भी औपनिवेशिक मानसिकता हावी है और हाईकोर्ट जजों का जिला जजों के प्रति रवैया कैसा रहता है. चीफ जस्टिस ने जिस स्थिति का प्रत्यक्ष अवलोकन किया है, उसी को लेकर उन्होंने सीख दी है कि हमें मॉडर्न ज्युडीशियरी और ईक्वल ज्युडीशियरी की ओर बढ़ना होगा.

    सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि कई जगह परंपरा है कि जब हाईकोर्ट जज लंच या डिनर ले रहे होते है तो डि्ट्रिरक्ट जज अदब से खड़े रहेंगे. वे हाईकोर्ट जज को भोजन परोसने की कोशिश भी करते हैं. सीजेआई ने कहा कि जब मैं जिला अदालतों का दौरा करता था तो जोर देकर कहता था कि जब तक डि्ट्रिरक्ट जज साथ नहीं बैठेंगे, तब तक मैं भोजन नहीं करूंगा. चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि कई बार जिला जजों को बैठकों के लिए बुलाया जाता है तो वे हाईकोर्ट जजों के सामने बैठने का साहस नहीं जुटा पाते. जब चीफ जस्टिस जिलों से गुजरते हैं तो न्यायिक अधिकारी जिलों की सीमा पर कतार लगाए खड़े रहते हैं.

    इस तरह के उदाहरण हमारे औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाते हैं जो ब्रिटिश हुकूमत समय से वैसी की वैसी ही चली आ रही है. हमें यह सब बदलना होगा. अब तक चली आ रही परंपरा की आलोचना करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि सबार्डिनेट संस्कृति को हमने ही बढ़ावा दिया है. हम जिला अदालतों को अधीनस्थ न्यायपालिका कहते है. डि्ट्रिरक्ट जजों को सबार्डिनेट जजों के रूप में न बुलाया जाए क्योंकि वे सबार्डिनेट या अधीनस्थ नहीं हैं.

    उन्होंने कहा कि आईएएस अफसर ऐसा भेदभाव नहीं करते. सीजेआई का आशय है कि जज तो जज ही होता है. वह जिला जज, हाईकोर्ट जज या सुप्रीम कोर्ट जज कोई भी हो. जब संविधान समानता और बंधुत्व पर जोर देता है तो न्यायपालिका में भी समानता का व्यवहार लाया जाना चाहिए.