संसदीय कार्यवाही पर CJI की बेबाक टिप्पणी

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    सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने बगैर किसी बहस के आपाधापी में पास होने वाले कानूनों को लेकर संसद की कार्यप्रणाली पर अप्रसन्नता जताई है. उन्होंने कहा कि संसद से ऐसे कई कानून पास हुए हैं जिनमें काफी कमियां हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि यदि किसी ने याचिका दायर कर इन कानूनों की वैधता को चुनौती दी तो कुछ कानून अदालत में रद्द भी हो सकते हैं. कानून हर हालत में संविधान की कसौटी पर खरे उतरने चाहिए. यदि सरकार के निर्देशों के अनुरूप नौकरशाहों द्वारा ड्राफ्ट किए गए कानून बगैर किसी चर्चा के या चयन समिति में विचार किए बगैर जल्दबाजी में यथावत पारित कर दिए गए तो उनमें कुछ न कुछ न्यूनताएं अवश्य रहने की संभावना बनी रहती है.

    संसद में बहस हो तो उसमें यथोचित सुधार हो जाता है. इन दिनों ऐसा नहीं हो पा रहा है. सीजेआई ने बिल्कुल सही कहा कि पहले के समय में संसद के दोनों सदन वकीलों से भरे हुए थे. उन दिनों होने वाली बहसों को देखें तो वे बहुत बौद्धिक व रचनात्मक हुआ करती थीं. वे जो भी कानून बनाया करते थे, उन पर बहस करते थे परंतु अब खेदजनक स्थिति है. हम कानून देखते हैं तो पता चलता है कि कानून बनाने में कई खामियां हैं और बहुत अस्पष्टता है. यह समझ में ही नहीं आता कि कानून किस उद्देश्य से बनाए गए हैं. इसी वजह से बहुत सारी मुकदमेबाजी हो रही है. साथ ही जनता को भी असुविधा और नुकसान हो रहा है. अगर सदन में बुद्धिजीवी और वकील जैसे पेशेवर न हों तो ऐसा ही होता है.

    सीजेआई ने कानून बिरादरी के लोगों से सार्वजनिक सेवा के लिए अपना समय देने के लिए कहा. उन्होंने जो कहा उसमें गहन वास्तविकता है. स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने वाले शीर्ष नेता, संविधान निर्मात्री परिषद के सदस्य तथा प्रथम व द्वितीय लोकसभा के अधिकांश सांसद वकालत के पेशे से आए थे. वे एक-एक धारा पर बहस करने की क्षमता रखते थे. कानून की ड्राफ्टिंग गलत हो तो तुरंत पकड़ लेते थे. आज किसी नेता के लोकप्रिय होने का यह मतलब नहीं कि वह कानून का  जानकार भी होगा.