Congressmen should stay connected to the land, don't get intoxicated just by this victory

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निश्चित रूप से हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में कांग्रेस की जीत अत्यंत महत्वपूर्ण है लेकिन वह इसे महज एक शुरुआत के तौर पर ले और मदमस्त या गाफिल होकर न बैठ जाए. अभी उसके सामने रास्ता लंबा है और दिल्ली की मंजिल काफी दूर है. कर्नाटक की शानदार विजय ने कांग्रेसजनों का उत्साह बढ़ाया है लेकिन उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि उनका मुकाबला बीजेपी से है जो हमेशा चुनावी मोड में रहती है. बीजेपी का अपना संगठित कैडर है और साथ ही उसके पीछे आरएसएस की ताकत है. बूथ स्तर पर उसके कार्यकर्ता मौजूद हैं. मतदाता सूची के हर पृष्ठ पर छपे नामों को अपने पक्ष में साधने के लिए बीजेपी पन्ना प्रमुख व उसके सहयोगियों को नियुक्त करती है. इसे देखते हुए कांग्रेस को अपना संगठन मजबूत करना होगा और कार्यकर्ताओं में जोश का संचार कर तत्परता बढ़ानी होगी. जमीनी स्तर पर काम करना आवश्यक है. ड्राइंग रूम पॉलिटिक्स से चुनाव नहीं जीते जाते. कर्नाटक की जीत में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा, प्रियंका गांधी की सक्रियता तथा सोनिया गांधी का पदार्पण अपनी जगह महत्व रखता है लेकिन सबसे बड़ी बात है कि कांग्रेस ने स्थानीय नेताओं-कार्यकर्ताओं पर भरोसा किया. कर्नाटक की जमीन से जुड़े सिद्धारमैया का दलित-वंचित-शोषित क्षेत्रों में प्रभाव है तो शिवकुमार भी केंद्रीय एजेंसियों के दबाव से विचलित नहीं हुए और कांग्रेस को विजयी बनाने में उन्होंने पूरी शक्ति लगाई. कांग्रेस को इस बात का पूरी तरह भान होना चाहिए कि चुनावी रण अभी जारी है. इस वर्ष अन्य राज्यों में भी विधानसभा चुनाव हैं जिनमें राजस्थान व छत्तीसगढ़ के चुनाव विशेष महत्व रखते हैं जहां बीजेपी की चुनौती का मुकाबला करते हुए कांग्रेस को अपनी सत्ता बचानी है. कर्नाटक में मुंह की खाने के बाद इसका बदला लेने के लिए बीजेपी इन दोनों राज्यों में जीत के लिए पूरा जोर लगाएगी. राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही खींचतान कहीं कांग्रेस के लिए भारी न पड़ जाए! इसी तरह छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव की आपसी तनातनी पार्टी को महंगी पड़ सकती है. इसलिए पार्टी में एकता बनाए रखना समय की मांग है. पहले कांग्रेस अपनी गलतियों से मध्यप्रदेश और गोवा खो बैठी है. मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने से बीजेपी की वापसी का रास्ता साफ हो गया था जबकि गोवा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सरकार बनाने का दावा करने में सुस्ती कांग्रेस को महंगी पड़ी. इस दौरान बीजेपी ने तत्परता से गठबंधन बनाकर राज्यपाल के सामने दावा पेश कर दिया था. लोकसभा चुनाव में भी मुश्किल से 1 वर्ष का समय बाकी रह गया है. इसे देखते हुए कांग्रेस जमीन से जुड़ी रहे और अपना जनाधार फिर से पुष्ट करे.