editorial anil Deshmukh will be finally released, the court pulled up the investigating agencies

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    यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि कुछ नेता मनगढ़ंत या हवा-हवाई आरोपों के लगने की वजह से कष्ट भोगने को मजबूर होते हैं. जांच एजेंसियां उन्हें अपना निशाना बनाती हैं और बेवजह जेल भेजा जाता है. जब किसी के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत ही नहीं है तो सुनी-सुनाई बातों के आधार पर कार्रवाई करने में कौन सा तुक है? इसमें प्रतिशोध की राजनीति भी देखी जाती है. कुछ भाग्यवादी लोग कह सकते है किसी के प्रारब्ध में जेल जाना लिखा हो तो टल नहीं सकता लेकिन ऐसा नहीं है. राजनीति में इतनी काटमकाट मची हुई है कि बदला भुनाने या सबक सिखाने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल किया जाता है. जिस नेता को इस तरह निशाना बनाया जाता है, उसकी प्रतिष्ठा ही नहीं स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है.

    महाराष्ट्र के 73 वर्षीय पूर्व गृहमंत्री व एनसीपी नेता अनिल देशमुख के साथ यही बीती. उन्हें डेढ़ वर्ष तक सीबीआई और ईडी ने तंग किया. अंतत: बाम्बे हाईकोर्ट ने उनकी मंजूर जमानत के फैसले पर रोक को आगे बढ़ाने से इनकार करते हुए अपने आदेश में सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियों की जमकर खिंचाई की तथा कहा कि आरोपों में कोई भी तथ्य नहीं है. इससे देशमुख की आर्थर रोड जेल से रिहाई का रास्ता साफ हो गया. दोनों पक्षों की दलीले सुनने के बाद न्यायमूर्ति संतोष चपलगांवकर ने कहा कि कोर्ट ने 21 दिसंबर 2022 को आदेश जारी कर कहा था कि जमानत पर लगी रोक को अब आगे नहीं बढ़ाया जाएगा. भ्रष्टाचार व 100 करोड़ रुपए की अवैध वसूली से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने 12 दिसंबर को जमानत प्रदान की थी लेकिन साथ ही 10 दिन के लिए अपने आदेश पर रोक लगाई थी ताकि सीबीआई सुप्रीम कोर्ट जा सके.

    सीबीआई के आग्रह पर यह रोक 27 दिसंबर तक बढ़ा दी गई थी और कहा था कि आगे किसी भी परिस्थिति में जमानत पर लगी रोक बढ़ाई नहीं जाएगी. जमानत मिलने के बाद भी देशमुख 15 दिन जेल में रहने को विवश हुए. 130 से अधिक छापे और 250 लोगों से पूछताछ के बावजूद देशमुख के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला. देशमुख पर 100 करोड़ रुपए की वसूली का आरोप लगाया गया था जो जांच में 4.7 करोड़ पर आ गया. ईडी के आरोप पत्र में तो यह वसूली 1.7 करोड़ हो गई. यह बात सामने आई कि मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीरसिंह और सचिन वझे ही वसूली के असली सूत्रधार हैं जबकि देशमुख के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं.

    मुंबई के पूर्व सीपी रणजीतसिंह शर्मा के केस का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि देशमुख भी बेदाग बरी नजर आते हैं. हाईकोर्ट ने देशमुख को जमानत देते हुए कहा था कि सीबीआई ने बर्खास्त पुलिस अधिकारी सचिन वझे के बयान के अलावा कोई बयान दर्ज नहीं किया है. उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने देशमुख को जमानत देते हुए इस बात का जिक्र किया कि देशमुख से संबंधित प्रकरण में वझे को सरकारी गवाहन बनाया गया है लेकिन यह विश्वास पात्र नहीं है.