editorial ashok Gehlot will not retire, dispute with sachin Pilot will increase in Rajasthan

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    इस वर्ष जिन 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, उनमें कांग्रेस शासित राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ का भी समावेश है. दोनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस नेताओं में होड़ रही हे. राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत की सचिन पायलट से प्रतिद्वंद्विता चली आ रही है तो छत्तीसगढ़ में के.टी. सिंहदेव मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए लगातार चुनौती पेश करते रहे हैं.

    छत्तीसगढ़ में पहले तय हुआ था कि बघेल और सिंहदेव बारी-बारी से ढाई-ढाई वर्ष मुख्यमंत्री पद संभालेंगे लेकिन बघेल ने पद नहीं छोड़ा और सिंहदेव मन मसोसकर रह गए. जहां तक राजस्थान का मामला है गुर्जर वोटों में अपना प्रभाव रखनेवाले सचिन पायलट ने पिछले विधानसभा चुनाव में गांव-गांव में दौरा कर कांग्रेस को विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री बनाएगी लेकिन तब पार्टी हाईकमांड के रूप में सोनिया गांधी ने अनुभव को तरजीह देते हुए अशोक गहलोत को ही सीएम बनाया.

    पायलट से धैर्य रखने को कहा गया. प्रियंका गांधी ने भी पायलट को समझा-बुझाकर पार्टी में बने रहने को राजी किया था. पायलट आखिर कब तक प्रतीक्षा करते रहेंगे? अशोक गहलोत उनके लिए कुर्सी खाली करने का इरादा बिल्कुल भी नहीं रखते. गहलोत ने कहा कि मैं अंतिम सांस तक राजनीति से रिटायरमेंट नहीं लेनेवाला हूं. कांग्रेस के लिए लगातार काम करता रहूंगा. जो मुख्यमंत्री होता है, वही चुनाव को लीड़ करता है. मैं 50 वर्षों से राजनीति कर रहा हूं. इस दौरान कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. मैं 3 बार राजस्थान का मुख्यमंत्री बना तो हाईकमांड ने कुछ समझकर ही बनाया होगा. चाहे इंदिरा गांधी रही हो या राजीव गांधी या अब सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका सभी ने मुझे मौका दिया.

    कांग्रेस ने मुझे पहचान दी. बिना कांग्रेस के हमें कौन पूछेगा? विधानसभा चुनाव हम सब मिलकर लड़ेंगे. बिना कांग्रेस के सभी कमजोर हैं. गहलोत के इस कथन से साफ है कि वह चुनाव के बाद फिर सीएम बनना चाहते है और पायलट को मौका देने को बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं. क्या कांग्रेस काईकमांड इस तरह की हठवादिता स्वीकार करेगा? पिछली बार हाईकमांड ने चाहा था कि गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाल लें. पर्यवेक्षक के रूप में मल्लिकार्जुन खडगे और अजय माकन को जयपुर भेजा गया था ताकि वे विधायक दल की बैठक बुलाकर पायलट को नेता निर्वाचित करवा दें.

    गहलोत समर्थक 90 से अधिक विधायकों ने अपनी अलग बैठक लेकर हाईकमांड को झटका दिया था. गहलोत ने इस तरह से अपनी ताकत दिखा दी थी. बाद में खडगे कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिए गए. गहलोत का ऐसा ही रवैया बना रहा तो उनका और सचिन पायलट का आपसी टकराव चुनाव में कांग्रेस को भारी पड़ सकता है और इसका लाभ बीजेपी को मिलेगा. पायलट भी आखिर कितना धैर्य रखेंगे. यदि गहलोत ने सीएम पद पर अपना एकाधिकार घोषित कर दिया है तो क्या पायलट उन्हें सहयोग देंगे? कांग्रेस हाईकमांड को इस बारे में अपनी नीति तय करनी होगी. यदि पुराने नेता ही पद पर जमें रहेंगे तो युवा नेतृत्व को मौका कब मिलेगा?