editorial At last wisdom came, Nepal gave up claim on India's Kalapani

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सदियों से नेपाल के साथ भारत का भरोसे का रिश्ता चला आ रहा है लेकिन समय-समय पर चीन इस भाईचारे को बिगाड़ने की कुटिल चाल चलता है. नेपाल को भारत के खिलाफ भड़काने और उल्टी पट्टी पढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ता. पिछले समय नेपाल ने भारत के लिपुलेख, कालापानी और लिंपिवाघुरा.. इलाकों का अपना क्षेत्र बताया था. नेपाल की संसद में भी प्रस्ताव पारित कर इन्हें नेपाली क्षेत्र करार दिया गया था. भारत ने इस तरह के रवैये का विरोध किया था. मई 2020 में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के लिपुलेख रोड का उद्घाटन करते समय यह मुद्दा उछला था.

अब नेपाल ने जनगणना को लेकर अपनी फाइनल रिपोर्ट जारी कर दी है जिसके पिथौरागढ़ जिले के कालापानी क्षेत्र के डेटा को शामिल नहीं किया. फाइनल रिपोर्ट में कालापानी के 3 गांवों का डेटा मिसिंग है. इन गांवों के नाम गेजी, नाली और कुटी हैं, जो कि भारतीय सीमा में पड़ते हैं और उत्तराखंड राज्य में हैं. नेपाल का यह कदम महत्वपूर्ण है कि उसने कालापानी पर अपना तथाकथित दावा छोड़ दिया. इसके पूर्व 2022 में जारी की गई अपनी प्रारंभिक जनगणना रिपोर्ट में उसने इसे शामिल किया था. चीन नेपाल के नेताओं को कितना भी बरगलाए लेकिन तथ्य यह है कि नेपाल एक स्वतंत्र राष्ट्र रहा है और यह भारत का एक विस्तृत परिवार है.

किसी भी प्रकार का संदेह उसे बदल नहीं सकता करीब 70 लाख नेपाली नागरिक भारत में रहते हैं और लगभग 6 लाख भारतीय नागरिक नेपाल में निवास करते हैं. वे एक दूसरे के देश में आते-जाते और काम करते रहे हैं. अंग्रेजों ने नेपाल को एक सीमावर्ती या बफर स्टेट के रूप में इस्तेमाल किया लेकिन आजादी के बाद चीजें बदल गईं. भारत और नेपाल के बीच 1950 के दशक में शांति और मित्रता का समझौता हुआ जो दोनों देशों के नागरिकों को एक-दूसरे के यहां मुक्त आवाजाही की सुविधा प्रदान करने के साथ कई अन्य पारस्परिक लाभ भी देता है.

दोनो देशों के बीच तनाव की मुख्य वजह भारत-चीन सीमा पर लिपुलेख दर्रे के पास की जमीन है जो कि सीमा-व्यापार का एक स्वीकृत बिंदु है और तिब्बत स्थित कैलास-मानसरोवर यात्रा का मार्ग है. इस विवाद को निपटाने के लिए भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंवाला काठमांडू गए थे ताकि नेपाल की आशंकाओं को दूर किया जा सके. भारत के प्रयासों के बावजूद नेपाल का कम्युनिस्ट नेतृत्व चीन से प्रभावित होता रहता है. नेपाली माओवादियों और भारतीय नक्सलियों के बीच संपर्क होना भी भारत की आंतरिक सुरक्ष के लिए चिंता का विषय रहा है.