संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रूचिरा कंबोज ने डंके की चोट पर बहुत सही बात कही हैं कि ‘राजनीतिक सुविधा’ के आधार पर आतंकवादियों का ‘बुरे’ या ‘अच्छे’ के तौर पर वर्गीकरण करने का युग तत्काल खत्म होना चाहिए. उन्होंने चेतावनी दी कि आतंकवादी कृत्यों को धार्मिक या वैचारिक रूप से वर्गीकृत करने से आतंकवाद से लड़ने की साझा वैश्विक प्रतिबद्धता कम हो जाएगी. हर प्रकार के आतंकवाद की कड़ी निंदा की जानी चाहिए.
आतंकवादी गुटों के लिए हथियारों, मादक पदार्थों, इंसानों व वित्त की तस्करी करनेवाले समुद्री लुटेरों और अपराधी नेटवर्क ने इस आतंकी खतरे को और जटिल बना दिया है. आतंकवाद की समस्या को किसी धर्म, राष्ट्रीयता, सभ्यता या जातीय समूह से नहीं जोड़ा जा सकता. आतंकवाद के सभी कृत्य आपराधिक है. यहां उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने अपने कूटनीतिक उद्देश्यों से गुड तालिबान और बैड तालिबान का वर्गीकरण किया था लेकिन इससे उसे कोई फायदा नहीं हुआ और अमेरिका को अफगानिस्तान से अपनी फौज वापस बुलाने पर मजबूर होना पड़ा.
जब भारत 1993 के सीरियल बम धमाकों के लिए दाऊद इब्राहिम को गुनहगार बताता था या मुंबई में 26/11 को हुए भीषण आतंकी हमले के लिए हाफिज सईद व लश्कर-ए-तैयबा को जिम्मेदार करार देता था तो अमेरिका जानबूझकर इसकी अनदेखी करता था. यहां तक कि अमेरिका आतंकवाद से संघर्ष में पाकिस्तान को अपना सबसे प्रमुख सहयोगी बताया करता था. अमेरिका को आतंकवाद की भीषणता तब समझ में आई जब न्यूयार्क के ट्िवन टावर पर आतंकी हमला हुआ. इसका प्रतिशोध उसने अल कायदा चीफ ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एवोटाबाद में मौत के घाट उतार कर लिया. सारी दुनिया के सामने भारत ने यह तथ्य रख दिया कि पाकिस्तान आतंकवाद की सबसे बड़ी फैक्टरी बना हुआ है.
जनरल जिया उल हक के समय से पाकिस्तान ने आतंकियों के जरिए छद्म युद्ध या प्राक्सीवार का सिलसिला शुरू किया. आतंकियों को पाकिस्तानी फौज और खुफिया एजेंसी आईएसआई ट्रेनिंग देकर शस्त्रो और विस्फोटकों के साथ भारत में घुसपैठ कराती रही है. पीओके में आतंकियों के ट्रेनिंग कैम्प और लांचिंग पैड बने हुए हैं. विश्व मंचों पर आतंकियों के मुद्दे पर चीन हमेशा पाकिस्तान की तरफदारी करता है. अब पाकिस्तानी फौज पर भी तालिबानी हमले होने लगे हैं. आतंकवाद समूचे विश्व की शांति व स्थिरता के लिए बहुत बड़ा खतरा है जिसका बिना भेदभाव किए कड़ा विरोध किया जाना चाहिए.