editorial Digital weak, emphasis on cash

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    देश डिजिटल बन रहा है. छोटे से छोटे काम के लिए भी यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) भुगतान लोकप्रिय बन रहा है. अरबों ट्रांजेक्शन हो रहे हैं, ट्रांजेक्शन की राशि भी अरबों-खरबों में बताई जा रही है. सरकार और सरकारी संस्थान खुश थे, लेकिन आरबीआई की एक रिपोर्ट ने सभी को चौंका दिया है. नोटबंदी के 6 साल बाद देश में नकदी का भरपूर उपयोग जारी है यानी लोगों के पास पैसा ठसाठस भरा पड़ा है, जिसका उपयोग वे बड़ी आसानी से कारोबार में कर रहे हैं. यह रिपोर्ट सरकारी दावों की पोल खोल रही है. देश में जनता के बीच मौजूद नकदी वर्तमान में 30.88 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर है. नोटबंदी के ठीक पूर्व 4 नवंबर 2016 में नकदी 17.7 लाख करोड़ से यह 71.84 प्रतिशत अधिक है.

    आखिर जनता के पास पुन: इतनी नगदी कैसे आई? कालेधन पर कुठाराघात करने के लिए मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 को 500 व 1000 के नोट चलन से हटा लिए थे. क्या वह नोटबंदी फेल हो चुकी है? नोटबंदी का मकसद कालेधन का खात्मा करना था और भारत को ‘कम नकदी’ वाली अर्थव्यवस्था बनाना भी एक टार्गेट था. तब इस कदम की कई विशेषज्ञों ने आलोचना की थी. गरीब व मध्यमवर्गीय परिवार ने अथाह संकट झेले थे. 6 वर्ष के अंदर ही नकदी का 71 फीसदी तक बढ़ जाना स्पष्ट करता है कि डिजिटल दुनिया की चकाचौंध के बीच भारतीयों की पसंदीदा मुद्रा नकद ही है. देश में छोटे-छोटे लेनदेन के लिए भले ही लोग डिजिटल माध्यम का उपयोग कर रहे हों, लेकिन जब बात बड़े लेनदेन की आती है तो जनता का भरोसा नकद नारायण पर ही टिका है. डिजिटल माध्यम बड़े लेनदेन को अब तक आकर्षित करने में विफल रहा है. आखिरकार बड़े लेनदेन करने में ही ‘असली मुनाफा’ है, जिसे कारोबारी बी-टु-बी (बिजनेस टु बिजनेस) माध्यम तक सीमित रखना चाहते हैं. सरकार को बताने में उन्हें अब भी परहेज ही है. इसी प्रवृत्ति के कारण मार्केट में नकदी का बोलबाला बरकरार है. डिजिटलीकरण की राह में यह बहुत बड़ी चुनौती के रूप में उभरकर सामने आया है. 

    2022 की दूसरी तिमाही की डिजिटल पेमेंट रिपोर्ट के अनुसार ग्राहक से व्यापारी के बीच यूपीआई लेनदेन औसतन 820 रुपए था. 800 रुपए के सौदे की प्रोसेसिंग करने की रिजर्व बैंक की अनुमानित लागत 2 रुपए है जो कि लेनदेन के मूल्य का सिर्फ 0.25 प्रतिशत है. जनवरी 2020 से जीरो एमडीआर चला आ रहा है. एमडीआर का अर्थ व्यापारी द्वारा अपने पेमेंट सर्विस प्रोवाइडर को दिया जानेवाला भुगतान है. इसे इंटरचेंज फीस भी कहा जा सकता है जो प्राप्तकर्ता बैंक, जारी करनेवाले बैंक को देता है. पेमेंट काउंसिल ऑफ इंडिया के अनुसार, इससे उद्योगों को 5500 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है. ऐसे व्यापारी जिनका मार्जिन कम है, एमडीआर में वृद्धि को स्वीकार करने से हिचकिचाते हैं. उपभोक्ता को डिजिटल पेमेंट में लाभ तब है जब भुगतान स्वीकार करनेवाले मर्चेंट नेटवर्क का आकार बड़ा हो. यदि उपभोक्ता डेबिट कार्ड इस्तेमाल करते हैं तो व्यापारी को अधिक लाभ होता है. वीसा और मास्टरकार्ड नेटवर्क लोकप्रिय हैं. इंटरचेंज फीस का भुगतान रकम हासिल करनेवाले बैंक को करना पड़ता है, जिसकी लागत वे व्यापारियों से वसूल करते हैं. बैंक ज्यादा चार्ज न करें, इसके लिए इंटरचेंज फीस नियंत्रित की जाती है.