editorial Government shaken on onion, no attention on cotton, orange, paddy

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जब तक अपनी व्यथाओं को लेकर किसान एकजुट होकर आंदोलन नहीं करते, तब तक सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगती. जब उपेक्षा बर्दाश्त के बाहर हो जाती है तो सड़कों पर उतरने की नौबत आती है. प्याज उत्पादकों पर इस वर्ष दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. जब मंडी में बेचने गए तो किसी को खर्च काटकर 2 रुपए का चेक दिया गया तो किसी से उल्टे रकम वसूली गई क्योंकि माल की कीमत से गाड़ी का किराया ज्यादा हो रहा था. इसलिए प्याज उत्पादक किसानों ने नाशिक से मुंबई तक के लिए लांग मार्च की शुरूआत की. इसे रोकने के लिए विधानसभा में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने किसानों को 300 रुपए प्रति क्विंटल सब्सिडी देने की घोषणा की लेकिन इस सौगात को किसानों ने ठुकरा दिया.

किसान सभा के नेता व पूर्व विधायक जीवा पांडु गावित नने कहा कि हमें सीएम का प्रस्ताव मंजूर नहीं है. उन्होंने सरकार से 600 रुपए प्रति क्विंटल का अनुदान और अगले सीजन से 2,000 रुपए प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मांगा है. विपक्ष भी सरकार की 300 रुपए सानुग्रह अनुदान की घोषणा से संतुष्ट नहीं है. एनसीपी नेता छगन भुजबल ने प्रति क्विंटल 500 रुपए अनुदान देने की मांग की. महाविकास आघाड़ी के विधायकों ने विधानसभा में विपक्ष के नेता अजीत पवार तथा विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे के नेतृत्व में विधान भवन की सीढि़यों पर विरोध प्रदर्शन किया. विपक्ष ने गाजर आंदोलन कर अपना विरोध जताया.

राज्य में एक सप्ताह में 6 किसानों ने आत्महत्या की है लेकिन कृषिमंत्री अब्दुल सत्तार ने यह कहकर कि किसान आत्महत्या कोई नई बात नहीं है तथा ऐसी घटनाएं कई वर्षों से हो रही हैं, किसानों के जख्मों पर नमक छिड़क दिया. राज्य में गन्ना किसानों की समस्या पर भी त्वरित निर्णय होना चाहिए. परिश्रम किसान करते हैं लेकिन भारी मुनाफा शुगर मिल वाले कमाते हैं.

गन्ना किसानों को समय पर भुगतान नहीं किया जाता और उपज का काफी कम मूल्य दिए जाने की शिकायत रही है. यदि जरूरत से ज्यादा चीनी का उत्पादन हो जाए तो उसे एक्सपोर्ट किया जा सकता है. इसका लाभ किसानों तक पहुंचाया जा सकता है. इसी प्रकार कपास, संतरा व धान उत्पादक किसानों पर भी सरकार का ध्यान नहीं है. पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष कपास को सही भाव नहीं मिल रहा है, इसलिए किसानों ने मंडी में लाने की बजाय कपास को घरों में ही रखा है. लागत को देखते हुए सरकार खरीद केंद्रों में उचित दर पर कपास खरीदने तो किसानों का संकट दूर होगा.

यही स्थिति संतरा व धान की फसल की भी है जिसके उत्पादकों को उचित मूल्य मिलना चाहिए. सरकार इस बारे में गंभीरता से विचार कर किसान हितैषी नीतियां बनाए और उचित कदम उठाए. कठिन परिश्रम के बाद अच्छी पैदावार करनेवाला किसान स्वाभाविक रूप से अपने लिए लाभ की उम्मीद करता है. नुकसान होने पर वह खुदकुशी जैसा कदम उठाने पर बाध्य होता है.