Record compilation of GST, now focus should be on development

बेबस जनता कर भी क्या सकती है!

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    इधर भीषण महंगाई जनता का कचूमर निकाल रही है और उधर बेरहम सरकार इस फिराक में है कि टैक्स बढ़ाकर लोगों को और भी बुरी तरह निचोड़ लिया जाए. बेबस जनता कर भी क्या सकती है! सरकार ने जीएसटी काउंसिल की मई में होनेवाली बैठक से पहले राज्यों से रोजमर्रा के इस्तेमाल की 143 वस्तुओं पर टैक्स की दर बढ़ाने को लेकर सुझाव मांगे हैं. निश्चित रूप से देश के अधिकांश बीजेपी शासित राज्य केंद्र के दृष्टिकोण से सहमति जताएंगे और इसके बाद महंगाई का ज्वालामुखी फिर भड़क उठेगा. केंद्र सरकार ने जिन 143 वस्तुओं के टैक्स रेट में बढ़ोतरी का प्रस्ताव दिया है, उनमें से 92 फीसदी वस्तुओं को 18 प्रतिशत कर दर में हस्तांतरित करने की बात कही गई है. जो वस्तुएं पहले से 18 प्रतिशत के स्लैब में हैं, उन्हें वहां से हटाकर 28 प्रतिशत जीएसटी के स्लैब में डाला जाएगा.

    सरकार इतनी महंगाई के बावजूद जीएसटी इसलिए बढ़ाना चाहती है ताकि हर महीने 1,42,000 करोड़ रुपए से अधिक की वसूली हो. जिन 143 वस्तुओं के दाम में बेतहाशा वृद्धि हो सकती है, उनमें पापड़, गुड़, पावरबैंक, घड़ी, सूटकेस, परफ्यूम, चॉकलेट, कपड़े, 32 इंच वाला टीवी, अखरोट, कस्टर्ड पाउडर, चश्मा, गॉगल, चमड़े की चीजें, अल्कोहलिक ड्रिंक्स और वाशबेसिन शामिल है. गुड़ और पापड़ जैसी कई वस्तुओं को ‘छूट सूची’ से हटाकर टैक्स के दायरे में लाने पर विचार किया जा रहा है. कांग्रेस ने जीएसटी को ‘गब्बर सिंह टैक्स’ का नाम दे रखा है. 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले सरकार ने नवंबर 2017 और दिसंबर 2018 में जीएसटी कर की दर को घटा दिया था. देशवासी पहले ही महंगाई से बुरी तरह हलाकान हैं, अब जीएसटी बढ़ाया गया तो मुश्किलें असहनीय हो जाएंगी.