editorial india and china China's actions continue, the path of talks with China is not easyworr

भारतीय सेना को देपसांग में परंपरागत पैट्रोलिंग (गश्त) नहीं करने दिया जा रहा है.

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    चीन और भारत के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा प्रश्न पर बुधवार को बैठक होने वाली है. इसके पहले भी दोनों देशों के सैनिक कमांडरों की 13 बैठकें हो चुकी हैं जिनके फलस्वरूप पैंगांग और घेगरा से दोनों सेना एक-दूसरे से दूर हटी हैं. हॉट स्प्रेग्स से अभी सेनाओं की वापसी नहीं हुई है. एलएसी पर चीनी फौज के जमाव से तनाव बना हुआ है. दोनों देशों ने अपने 50,000 सैनिकों की तैनाती कर रखी है. जब तक देपसांग एरिया को लेकर समझौता नहीं हो जाता तनाव बना रहेगा.

    भारतीय सेना को देपसांग में परंपरागत पैट्रोलिंग (गश्त) नहीं करने दिया जा रहा है. पैगांग में नदी पर बड़ा पुल बनाकर चीन दिखाना चाहता है कि वह लंबे समय तक वहां मोर्चा बंदी करने जा रहा है. यह पुल वहां बनाया गया जहां चीन ने 1962 के युद्ध में अवैध तरीके से कब्जा किया था भारत ने कहा कि उसने चीन के अवैध कब्जे को कभी भी स्वीकार नहीं किया है. एलएसी पर चीन अन्य सड़के व पुल भी बनाने के अलावा सैनिक ढांचा मजबूत कर रहा है. इससे लगता है कि वह पीछे हटने का इरादा नहीं रखता. गत सप्ताह चीन ने अरुणाचल प्रदेश को पुन: अपना बताते हुए उसके काम का अपने तरीके से मानवीकरण कर दिया.

    वह अरुणाचल को दक्षिण तिब्बत बताता है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने चीन की इस हरकत का विरोध किया है और कहा कि अरुणाचल भारत का अभिन्न अंग है. यद्यपि प्रधानमंत्री का कहना है कि किसी ने हमारी जमीन पर कब्जा नहीं किया, न हम करने देंगे परंतु गलवान घाटी की मुठभेड़ और बाद में कमांडरों की चर्चा आखिर किसलिए थी? बातचीत का उद्देश्य यही था कि चीन ने जहां-जहां घुसपैठ की है, वहां से पीछे हट जाएं. चीन ने सीमा तक सड़कें व पुल बना लिए हैं जबकि भारत ने लंबे समय तक इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. अब सेना को तेजी से सीमा पर पहुंचाने के लिए भारत भी पहाड़ों में सड़कें बना रहा है.