Editorial Lok Sabha-Rajya Sabha, the Election Commission should have an independent secretariat

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    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस मुद्दे पर खिंचाई की कि उसके पास मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का कोई तर्कसंगत या सुनियोजित सिस्टम नहीं है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि देश की आजादी को 75 वर्ष पूरे हो गए हैं लेकिन आज तक एक भी महिला मुख्य चुनाव आयुक्त नहीं बन पाई. चुनाव आयोग में नियुक्ति के दौरान लिंग विविधता महत्वपूर्ण है.

    एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि कोई तंत्र ही नहीं है और सरकार अपनी तरह से काम कर रही है. क्या यह संविधान बनानेवाले लोगों की इच्छाओं को मारने का काम नहीं है? संविधान कहता है कि ऐसी नियुक्तियां संसद द्वारा किए जानेवाले कानून के प्रावधानों के अधीन होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा हैं. याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट लोकसभा और राज्यसभा की तरह भारतीय चुनाव आयोग के लिए भी एक स्वतंत्र सचिवालय होना चाहिए. चुनाव आयोग का स्वतंत्र बजट रहे. उसके तीनों आयुक्तों को समान अधिकार मिले.

    जरूरत पड़ने पर आयुक्तों को पद से हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया अपनाई जाए. यह सभी बातें काफी महत्व रखती हैं. जब टीएन शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त रहते चुनाव आयोग काफी शक्तिशाली बन गया था तो सत्ताधारी दल को उससे असुविधा महसूस हुई. इसके बाद सरकार ने उसे नरम बनाने के ऐसे उपाय किए कि वह काफी हद तक सरकार के संकेतों पर चलने लगा. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीखा सवाल पूछा कि क्या यह मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्तों का चयन करने में अपनाए गए तरीकों या मानदंडों की व्याख्या कर सकती है? चुनाव आयोग की पारदर्शिता को लेकर भी कोर्ट ने कई सवाल किए. संवैधानिक संस्थाओं को स्वायत्तता दिया जाना आवश्यक है लेकिन उन पर सरकार का बढ़ता नियंत्रण चिंता का विषय है.