editorial No house of his own in the country Mehbooba Mufti will go abroad

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    कुछ राजनेताओं के साथ ऐसी नौबत आती है कि उन्हें रहने के लिए अच्छा सा घर तक नसीब नहीं होता. उनकी हालत ऐसी हो जाती है कि आबोदाना ढूंढ़ते हैं, एक आशियाना ढूंढ़ते हैं. पद पर रहते हुए घर नहीं बनाने का नतीजा पद खो देने के बाद भुगतना पड़ता है. एक पुराना उदाहरण था देश के पूर्व गृहमंत्री और 2 बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रह चुके गुलजारीलाल नंदा का जो अपने बुढ़ापे में किराए के मकान में रहने को मजबूर थे.

    किराया अदा नहीं करने पर उन्हें मकान खाली करने की विषम स्थिति से जूझना पड़ा था. नंदा एक सीधे-सादे सिद्धांतवादी नेता थे जिन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री पद से हटने के बाद देश में सदाचार आंदोलन चलाया था. इस आंदोलन को लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया बल्कि मजाक में कहने लगे कि इन दिनों रिश्वत का रेट बढ़ गया है. जो अधिकारी एक नोट में मान जाता था, वह अब सदाचार मांगने लगा है. फिलहाल जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री तथा पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के साथ मकान से बेदखल होने की नौबत आ गई है.

    उन्हें जल्द ही श्रीनगर के गुपकर रोड स्थित 8 कमरों वाला बंगला फेयर व्यू गेस्ट हाउस खाली करना पड़ेगा. यह गेस्टहाउस महबूबा के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद को 2005 में आवंटित किया गया था जब उन्होंने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन सरकार में 3 वर्ष पूरे किए थे. जहां तक महबूबा का सवाल है उन्होंने अप्रैल 2016 से जून 2018 तक अपने कार्यकाल में वहा रहना जारी रखा. पीडीपी-बीजेपी की सरकार गिरने के बाद महबूबा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन इसके बाद भी उन्हें इस आवास में बने रहने की अनुमति दी गई. इस दौरान उन्होंने खद के लिए निजी मकान खरीदने या बनवाने की कोई पहल नहीं की.

    महबूबा और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के बीच अभी तक नए घर को लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई है. उन्हें तुलसीबाग इलाके में घर दिखाया गया जो महबूबा के अनुसार अच्छी स्थिति में नहीं था. अब महबूबा कह रही है कि वो अपनी बहन के घर रहने चली जाएंगी जो विदेश में रहती है. यदि विदेश चली जाएगी तो कश्मीर में राजनीति कैसे करेंगी? इसी तरह की हालत उन नेताओं की भी होती है जो केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहते हैं. पद पर रहते समय दिल्ली में खुद का घर नहीं बनवाया तो उन्हें पद खोने के बाद सरकारी बंगला खाली करने की नौबत आ जाती है. मकान की आवश्यकता गरीब-अमीर, छोटे-बड़े हर किसी को होती है. समय रहते इंतजाम नहीं किया तो पछताने की नौबत आती है.