editorial the voice of the general public in the Parliament, a serious and considerable issue

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    देश की अधिकांश जनता महसूस करती है कि उसने अपने जनप्रतिनिधियों के रूप में जिन सांसदों को निर्वाचित किया है, वे संसद में जाकर उनकी मांगों और समस्याओं को नहीं उठाते, बल्कि चुप्पी साध लेते हैं. या तो इन नेताओं को चुनाव के बाद जनता से कोई लगाव नहीं रह जाता अथवा पार्टी अनुशासन की वजह से वे मौन रहते हैं. ऐसी हालत में 5 वर्ष तक जनता अपनी आवाज कैसे और किस माध्यम से उठाए?

    करण गर्ग नामक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करने की मांगवाली अपनी याचिका में कहा कि ऐसे किसी भी औपचारिक तंत्र या फार्मल सिस्टम का पूरी तरह अभाव है जिसके जरिए नागरिक सांसदों के साथ जुड़ सकते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा सकते हैं कि संसद में महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस हो. इस तंत्र की अनुपस्थिति से जनता और सांसदों के बीच एक शून्य पैदा हो जाता है. लोग कानून बनाने की प्रक्रिया से पूरी तरह अलग हो जाते हैं.

    याचिका में कहा गया कि लोकतंत्र में पूरी तरह से भाग लेने के लिए नागरिकों को उनके निहित अधिकारों से दूर रखना गंभीर चिंता का विषय है. यह ऐसा मुद्दा है जिसे तुरंत सही करने की जरूरत है. संसद में जनता की भागीदारी को लेकर यह याचिका अनूठे किस्म की है. महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस के लिए सीधे संसद में नागरिकों को याचिका दाखिल करने की मांग के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने याचिकाकर्ता करण गर्ग के वकील रोहन जे. अल्वा से कहा कि वह अपनी याचिका केंद्र के वकील को दें.

    इस संबंध में मामले की सुनवाई फरवरी में होगी और केंद्र का पक्ष सुना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि यदि याचिका को अनुमति दी जाती है तो इससे संसद के कामकाज में रुकावट आएगी क्योंकि अन्य देशों की तुलना में भारत में काफी बड़ी आबादी है. यदि सभी ओर से नागरिकों की याचिकाएं आने लगीं तो संसद का कामकाज अवरुद्ध हो जाएगा. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि याचिका में संवैधानिक कानून पर महत्वपूर्ण सवाल उठाए गए हैं. कोई मतदाता जनहित के मुद्दों पर चौकस है लेकिन निर्वाचित होने के बाद सांसदों से जुड़ने के लिए उसके पास कोई अवसर नहीं है.

    तब सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पूछा कि लोकसभा और राज्यसभा के खिलाफ आपकी रिट याचिका कैसे विचारणीय है? इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में यह प्रणाली प्रचलित हैं जहां आम जनता से जुड़ा मुद्दा विचार के लिए नागरिकों की याचिका के जरिए सीधे लाया जा सकता है. जब सांसद कोई मामला नहीं उठाते तो आम जनता याचिका के माध्यम से ऐसी पहल करती है.