भारी महंगाई में लोग बचत करें भी तो कैसे?

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    महंगाई का तांडव चलते भारतीयों की बचत 5 वर्षों में घटकर सबसे निचले स्तर पर आ गई है. पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, अनाज, सब्जियों के दाम और बिजली की दर सभी में इतना इजाफा हुआ है कि लोग बचत करना तो दूर रहा, मुश्किल से गृहस्थी चला पा रहे हैं. कुछ लोगों को तो घर का खर्च चलाने के लिए व्यक्तिगत कर्ज भी लेना पड़ा. यह बात अलग है कि लॉकडाउन के दौरान बचत शिखर पर थी क्योंकि उस समय लोगों के पास खरीदारी करने का विकल्प ही उपलब्ध नहीं था. 

    लोग मन मारकर रह गए. इसके अलावा उनके मन में दहशत भी बैठ गई थी कि यदि कोरोना हो गया तो इलाज के लिए काफी पैसों की जरूरत पड़ेगी. इसलिए उन्होंने हाथ रोककर खर्च किया. महामारी का असर धीमा होने पर लोग खरीदारी पर खुद की लगाई बंदिशों को तोड़ने लगे और ‘रिवेंज शॉपिंग’ करने लगे. यह प्रेशर कुकर से भाप निकलने जैसी बात थी उस समय बचत ज्यादा थी लेकिन आमदनी में कोई वृद्धि नहीं हो रही थी. 

    जल्द ही वह खरीदारी का गुबार भी हट गया. कम आयवालों पर जब महंगाई तेज असर डालेगी कि ये परिवार आय घटने से अपनी खरीदारी पर लगाम लगाएंगे. इच्छा होते हुए भी लोग बचत नहीं कर पा रहे क्योंकि महंगाई से जीवन यापन या रहन सहन की लागत बढ़ गई है. विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम’ के सर्वे के मुताबिक कामगारों की वास्तविक मजदूरी या रीयल वेजेस दुनिया भर में घटने की आशंका है. मुद्रा की क्रय शक्ति कम हो गई है और महंगाई का दबाव निरंतर बढ़ रहा है. 

    जो भी कमाई होती है वह आरती की थाली के कपूर की भांति देखते ही देखते स्वाहा हो जाती है. चावल की ऊंची कीमतों से स्थिति बिगड़ने का जोखिम है. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2022 में घरेलू वित्तीय बचत देश के जीडीपी के 10.8 फीसदी के बराबर रही. यह वित्त वर्ष 2021 की तुलना में 15.9 फीसदी और उसके पहले के 3 वित्त वर्ष के मुकाबले 12 फीसदी की गिरावट है. तेजी से बढ़ती महंगाई और बेहिसाब खपत ने लोगों की बचत क्षमता बेहद कम कर दी. इसके अलावा बैंकों की ब्याजदरों में कमी आने से जमाकर्ताओं की बचत भी प्रभावित हुई.