देश में पहली बार, ट्रेन लेट होने पर यात्रियों को रिफंड

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    देश की पहली निजी ट्रेन तेजस एक्सप्रेस लेट हो जाने पर अपने 2,135 यात्रियों को 4.50 लाख रुपए हर्जाना दे रही है. इसका अनुकरण सरकारी ट्रेनों को भी करना चाहिए जो कि प्राय: लेट हुआ करती हैं. यदि उन्हें भी हर्जाना देने के लिए बाध्य किया जाए तो उनके होश ठिकाने आ जाएंगे और तब सरकारी ट्रेनें भी समय पर चलने लगेंगी. 

    तेजस एक्सप्रेस ने यात्रियों को हर्जाना देकर अपनी साख बढ़ाई है. यह देश की पहली ऐसी ट्रेन है जिसके लेट होने पर यात्रियों को मुआवजा मिलता है. सवाल समय की कीमत का है. किसी को इंटरव्यू या परीक्षा के लिए जाना है, किसी को ड्यूटी ज्वॉइन करनी है या कोई अपने मरणासन्न परिजन को देखने जा रहा है तो वह चाहेगा कि ट्रेन निर्धारित समय पर पहुंचे. यह रेल विभाग का कर्तव्य है कि यात्री को सुरक्षित और सही समय पर उसके गंतव्य तक पहुंचाए. 

    फ्लाइट जैसी सुविधाओं वाली प्राइवेट सेक्टर की ट्रेन तेजस एक्सप्रेस को लेकर उसका संचालन करने वाली आईआरसीटीसी का दावा है कि यह ट्रेन 99.9 फीसदी राइट टाइम रही है. अभी लेट होने के लिए पूरी तरह तेजस को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. गत शनिवार को भारी बारिश के बाद यार्ड में पानी भरने से दिल्ली रेलवे स्टेशन का आटोमैटिक सिग्नल फेल हो गया था. 

    ऐसे में तेजस को रुकना पड़ा और वह करीब ढाई घंटे देरी से पहुंची. ऐसे ही वापसी में भी ट्रेन लखनऊ के लिए इतनी ही देर से छूटी. तेजस ट्रेन का नियम है, जिसके अनुसार 1 घंटा लेट होने पर 100 रुपए, 2 घंटे या अधिक लेट होने पर 250 रुपए हर्जाना दिए जाने का प्रावधान है. इसके पूर्व गत वर्ष ठंड में कोहरे की वजह से तेजस एक बार 2 घंटे लेट हुई थी, तब डेढ़ हजार से अधिक यात्रियों को हर्जाना देना पड़ा था. 

    कोरोना की दूसरी लहर के बाद 7 अगस्त से फिर शुरू हुई तेजस एक्सप्रेस विदेश की किसी लग्जरी ट्रेन के समान है जो सफर का आनंददायी अनुभव देती है. क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जो नेता निर्वाचित होने के बाद अपना वादा पूरा नहीं कर पाते और लेटलतीफी दिखाते हैं, उन्हें जनता को हर्जाना देने के लिए बाध्य किया जाए! ऐसा प्रावधान हो तो निश्चित रूप से लोकतंत्र में सुधार आएगा.