कोर्ट के सम्मुख नतमस्तक सरकार

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    संविधान ने लोकतंत्र के 3 स्तंभों में न्यायपालिका, कार्यपालिका व संसद के अधिकारों का स्पष्ट वर्गीकरण किया है. इसलिए इन घटकों में कोइ भी टकराव होना लोकतंत्र के लिए अभीष्ट नहीं है. संसद को यदि कानून बनाने का अधिकार है तो न्यायपालिका को भी कानून की वैधता को परखने या उसकी समीक्षा करने का पूरा अधिकार है. पिछले कुछ समय से कार्यपालिका यानी सरकार और न्यायपालिका के बीच मोटे तौर पर कुछ मुद्दों पर टकराव नजर आया. सबसे बड़ा मुद्दा था जजों की नियुक्ति का! यह नियुक्ति कॉलेजियम करे या सरकार? इसके अलावा जजों के अवकाश का भी मुद्दा था कि क्या उन्हें लंबी छुट्टियां मिलनी चाहिए. देश की अदालतों में लंबित 5 करोड़ मामलों का भी मुद्दा था. यह सारी समस्याएं हल करने के लिए न्यायपालिका और सरकार के बीच सहयोग होना चाहिए.

    कानून मंत्री किरन रिजिजू के तीखे बयानों का सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा प्रतिवाद किया. खासतौर पर सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जजों की नियुक्ति वर्तमान व्यवस्था में कॉलेजियम के जिम्मे ही है. उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान 99वें संविधान संशोधन के माध्यम से कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के गठन का कानून बनाया था. 2015 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने उस कानून को रद्द करते हुए कॉलेजियम प्रणाली की कमियों को दूर करने की बात कही थी.

    कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों को सरकार ने मंजूरी रोक रखी है. जजों की स्वीकृत संख्या भर नहीं पा रही है. कानून मंत्री रिजिजू के कुछ बयान काफी तीखे रहे. इससे यही संदेश गया कि सरकार प्रतिबद्ध न्यायपालिका या कमिटेड ज्युडीशियरी चाहती है. यह भी आरोप लगा कि कॉलेजियम व्यवस्था में जातिवाद, परिवारवाद से लेकर पेशेवर निकाल जैसे पहलुओं का बोलबाला रहता है तथा दुनिया में कहीं ऐसी प्रणाली नहीं है कि जज ही जजों की नियुक्तियां करें.

    जजों के चयन में पारदर्शिता और व्यापकता बरती जानी चाहिए. यह भी सुझाव दिया गया कि न्यायाधीशों का चयन यदि लोकसेवा आयोग के माध्यम से किया जाए तो यह ज्यादा सरल, सहज स्वीकार्य और पारदर्शी होगा. जब सरकार व न्यायपालिका के बीच तनातनी बढ़ती नजर आई तो ऐसी स्थिति में कोर्ट के सम्मुख सरकार नतमस्तक होती नजर आई. कानून मंत्री रिजिजू ने नरमी दिखाते हुए कहा कि अदालतों में लंबित मामलों को सुलझाने के लिए मोदी सरकार न्यायपालिका को पूरा सहयोग दे रही है. सरकार ने कोरोना के दौरान भी अदालतों को अच्छी तरह से सुसज्जित करने के कदम उठाए ताकि अदालतें काम कर सकें. रिजिजू ने सरकार और न्यायपालिका में टकराव की खबरों का खंडन करते हुए इसके लिए मीडिया को दोषी ठहराया.

    उन्होंने कहा कि कई नेता और मीडिया कर्मी लगातार यह दुष्प्रचार कर रहे हैं कि केंद्र और न्यायपालिका के बीच किसी तरह का तनाव है. कई बार मीडिया दावा करता है कि सरकार न्यायपालिका के अधिकारों पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार संविधान को सबसे ऊपर मानती हे. कानून मंत्री का दावा अपनी जगह है लेकिन जब किसी जज को सेवानिवृत्ती के बाद राज्यसभा सदस्य बनाया जाता है तो प्रश्न आता है कि उसे किस बात का पुरस्कार दिया गया. इसके अलावा देश में इमरजेंसी के समय भी प्रतिबद्ध न्यायपालिका देखी गई थी.