Grand Alliance meeting postponed, what is Kharge's preoccupation with

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विपक्षी एकता के प्रयासों के तहत बीजेपी विरोधी दलों को एकजुट करने के प्रयास जारी हैं लेकिन लगता है कि कांग्रेस इसे पूरी गंभीरता से नहीं ले रही है. उसका यह रवैया विचित्र व अटपटा मालूम पड़ता है. जदयू नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक सार्थक पहल कर रहे हैं ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव के पूर्व बीजेपी विरोधी पार्टियां एक राष्ट्रीय मंच पर आ जाएं और परस्पर तालमेल कर चुनावी रणनीति बनाएं. बीजेपी राजनीतिक रूप से इतनी ताकतवर हो चुकी है कि कोई अकेली पार्टी उसे चुनौती नहीं दे सकती. यदि विपक्षी दलों में एकजुटता हो तथा बीजेपी प्रत्याशी के मुकाबले गठबंधन का सर्वमान्य प्रत्याशी खड़ा हो तो ऐसे में बीजेपी को नाकों चने चबाने की नौबत आ सकती है. अभी बीजेपी इसलिए सफल हो जाती है क्योंकि विपक्ष के वोट बंट जाते हैं. अगले वर्ष संभवत: अप्रैल में होनेवाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए विपक्ष के लिए कुछ महीनों का ही समय बचा है कि वह मजबूत गठबंधन बना ले. नीतीश कुमार ने पटना में 12 जून को होनेवाली बीजेपी विरोधी पार्टियों की पहली एकता बैठक को इसलिए टाल दिया क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे उस दिन उपलब्ध नहीं हैं. कांग्रेस ने कहा था कि मीटिंग में पार्टी की ओर से एक मुख्यमंत्री समेत 2 नेता जाएंगे. इस पर नीतीशकुमार ने कहा कि 12 जून की बैठक के लिए अधिकतम समर्थन आ गया है लेकिन एक-दो लोग उस दिन उपलब्ध नहीं थे. हमने कांग्रेस से कह दिया कि आप लोग भी बात कर लीजिए. उसके बाद जो डेट तय होगी उसमें बैठक होगी. उस मीटिंग में सारी पार्टियों के प्रमुखों को आना है पार्टी हेड के बदले कोई प्रतिनिधि आएगा तो ये ठीक नहीं है. इस तरह 12 जून की मीटिंग टालकर और पार्टी प्रमुखों के आने क अनिवार्यता की शर्त लगाकर नीतीशकुमार ने कांग्रेस पार्टी और उसके अध्यक्ष पर दबाव बढ़ा दिया है. अब खड़गे के बिना महागठबंधन की बैठक नहीं हो सकती और उनके नहीं आने की वजह से ह मीटिंग टली है तो जाहिर है कि दबाव अब कांग्रेस पर है. प्रश्न उठता है कि खड़गे की ऐसी क्या व्यस्तता है जो बैठक में शामिल होने से कन्नी काट रहे हैं? क्या वे सोनिया गांधी या राहुल गांधी के निर्देश की प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनका कोई स्वतंत्र निर्णय नहीं है? क्या अनुभवी और बुजुर्ग नेता होने के बावजूद खड़गे महागठबंधन जैसे विषय की महत्ता नहीं समझ पा रहे हैं? क्या उन्हें लगता है कि कांग्रेस अकेले ही बीजेपी से टक्कर ले पाएगी? 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस ने 543 लोकसभा सीटों में से सिर्फ 44 सीटें हासिल की थीं और 2019 के चुनाव में उसे 52 सीटें मिली थीं. इसलिए वस्तुस्थिती का तकाजा है कि महागठबंधन की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष शामिल हों. यह इसलिए जरूरी है क्योंकि विपक्ष का बिखराव बीजेपी की जीत सुनिश्चित करता है.