खनन लीज का मामला झारखंड में हेमंत सोरेन की कुर्सी खतरे में

    Loading

    झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी खतरे में है. चुनाव आयोग ने सोरेन से पूछा है कि अपने लिए खदान की लीज लेने की वजह से क्यों न उन्हें अयोग्य घोषित किया जाए? मुख्यमंत्री पर आरोप है कि उन्होंने जनप्रतिधित्व अधिनियम की धारा-9अ का उल्लंघन किया है. इसके अंतर्गत यदि कोई सांसद या विधायक सरकार के साथ किसी कार्य अथवा सामग्री की आपूर्ति के लिए अनुबंध करता है तो उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाता है.

    लाभ के पद पर पाए जाने से उसकी सदस्यता समाप्त कर दी जाती है. अपनी सफाई में हेमंत सोरेन ने कहा कि उन्होंने खनन की लीज सरेंडर कर दी है. 2019 में इस लीज का नवीनीकरण करना था जो कि उन्होंने नहीं किया. मुख्यमंत्री चाहे जो भी सफाई दें, खनन विभाग के प्रभारी मंत्री रहते हुए उन्होंने खुद के लिए लीज मंजूर की, जो कि हितों का टकराव माना जाएगा. भारत सरकार ने जो आचार संहिता बना रखी है, वह सभी केंद्रीय व राज्यों के मंत्रियों पर लागू होती है.

    इसके अनुसार उन्हें अपने लाइसेंस, कोटा, परमिट, लीज से जुड़े सारे हित संबंध त्यागने पड़ते हैं. इसके पहले 1993 में नरसिंहराव सरकार के समय हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन का नाम झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड में सामने आया था. तब शिबू सोरेन के साथ शैलेंद्र महतो और साइमन मरांडी भी शामिल थे. उन्होंने करोड़ों की रिश्वत के बदले सरकार को गिरने से बचाने के लिए अपना समर्थन दिया था.

    रिश्वत की रकम उनके बैंक खातों में जमा की गई थी. अब उच्च स्तर के भ्रष्टाचार का पता लगाना कठिन होता है क्योंकि नेता कार्पोरेट ग्रुप, ठेकेदारों या बेनामी सौदों के नाम पर रिश्वत लेते हैं. यदि हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा तो झारखंड में कांग्रेस-झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन खटाई में पड़ जाएगा. इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है.