वैश्विक आर्थिक विकास भारत और चीन की प्रमुख भूमिका होगी

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    कितने ही दशकों तक भारत पर विकासशील देश का तमगा लगा रहा लेकिन खुली अर्थव्यवस्था अपनाने और भूमंडलीकरण के बाद देश की प्रगति को पंख लगते चले गए. अब हमारा देश ऐसे मुकाम पर जा पहुंचा है कि समूची दुनिया की निगाहें उस पर लगी हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का यह कथन विशेष उल्लेखनीय है कि भारत और चीन के कंधों पर ग्लोबल ग्रोथ की जिम्मेदारी होगी. 2023 की वैश्विक आर्थिक वृद्धि में आधा योगदान इन दोनों एशियाई देशों का होगा. निश्चित रूप से कोरोना महामारी ने संपूर्ण विश्व की प्रगति को झकझोर कर रख दिया था. इससे उबरने के बाद लगभग 1 वर्ष से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध ने अपने साथ ही अन्य देशों की इकोनामी को भी तहस नहस करने में कसर बाकी नहीं रखी.

    पश्चिमी देश भीषण ऊर्जा संकट से जूझ रहे हैं. उनकी अर्थव्यवस्था भी चरमरा गई है. रूस और यूक्रेन दोनों ही गेहूं के बड़े निर्यातक हैं लेकिन युद्ध से निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुआ. यूरोप के देशों का दोहरा रवैया इस युद्ध को और भड़का रहा है. वह यूक्रेन को टैंक व घातक हथियार उपलब्ध करा रहे हैं. साथ ही रूस से तेल भी खरीदने में परहेज नहीं कर रहे हैं. भारत की विकास दर के लक्ष्य में कुछ कमी आई है परंतु फिर भी वह संभली हुई है. देखा जाए तो भारत की आर्थिक प्रगति की बुनियाद उसके किसान और मजदूर हैं. औद्योगिक विकास तथा वाणिज्य-व्यापार का भी इसमें काफी योगदान है.

    जब कोरोना संकट के दौरान भारत ने दुनिया के देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराई तो उसे विश्व की फार्मेसी के रूप में सराहना मिली थी. जो पश्चिमी देश अपनी अकड़ में भारत को पूछते नहीं थे उन्हें हमारे देश की शक्ति का एहसास हो गया है. आईएमएफ ने एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत की आर्थिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 2023-24 में 6.1 फीसदी रहने के अपने अनुमान को बरकरार रखा है.

    अपने ताजा वर्ल्ड आउटलुक अपडेट में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान जताया कि भारत तेजी से वृद्धि हासिल करनेवाली इकोनॉमी बना रहेगा. वैश्विक आर्थिक दृष्टि में भारत व चीन की सर्वाधिक प्रमुख भूमिका रहेगी जबकि अमेरिका और यूरोप की इसमें केवल 10 प्रतिशत भागीदारी होगी.

    यद्यपि वित्त वर्ष 2024 में भारत की वृद्धि दर कम होकर 6.1 फीसदी रहेगी जबकि वित्त वर्ष में 2023 में उसके 6.8 फीसदी रहने का अनुमान है. बाहरी चुनौतियों के बावजूद घरेलू मांग मजबूत होने से वित्त वर्ष 2025 में भारत की वृद्धि दर बढ़कर 6.8 फीसदी पर पहुंच सकती है. इस पर भी भारत के सामने बड़ी आबादी और युवा बेरोजगारी की चुनौती है. विश्व के अन्य देश भी समस्याओं से जूझ रहे हैं लेकिन भारत अपने सामने प्रगति के लक्ष्य को लेकर सधे कदमों से आगे बढ़ रहा है.